शुक्रवार, 14 मई 2021

Environmental pollution essay in hindi

Environmental pollution essay in hindi

पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध 


Paryavaran pradushan ki samasya aur samadhan par nibandh 

पर्यावरण प्रदूषण की समस्या और समाधान पर निबंध 

रूपरेखा-

1. प्रस्तावना, 2. प्रदूषण के विभिन्न प्रकार-(i) वायु प्रदूषण, (ii) जल प्रदूषण, (iii) रेडियोधर्मी प्रदूषण, (iv) ध्वनि प्रदूषण, (v) रासायनिक प्रदूषण, 3. उपसंहार-प्रदूषण पर नियन्त्रण।

प्रस्तावना-

प्रदूषण (Polltion) वायु, जल एवं स्थल की भौतिक एवं रासायनिक विशेषताओं का वह अवांछनीय परिबर्तन है जो मनुष्य और उसके लिए लाभदायक जन्तुओं, पौधों, औद्योगिक संस्थाओं तथा दूसरे कच्चे माल इत्यादि को किसी भी रूप में हानि पहुँचाता है। वातावरण में कुछ हानिकारक घटकों का प्रवेश हो जाने से वातावरण दूषित हो जाता है, इसी को हम पर्यावरण प्रदूषण की संज्ञा देते हैं 

 पर्यावरण प्रदूषण के विभिन्न प्रकार-

विकासशील देशों में औद्योगिक एवं रासायनिक कचरे के बढ़ने के कारण जल ही नहीं वायु और पृथ्वी भी प्रदूषण Pollution से ग्रस्त हो रही है। मुख्य प्रदूषण निम्नलिखित हैं-


(1) वायु प्रदूषण-
वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें एक विशेष अनुपात में उपस्थित रहती हैं। साँस द्वारा हम शुद्ध वायु (ऑक्सीजन) ग्रहण करते हैं तथा अशुद्ध वायु (कार्बन डाइऑक्साइड) छोड़ते रहते हैं। हरे पौधे प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण कर शुद्ध वायु को निष्कासित करते रहते हैं। इससे वातावरण में ऑक्सीजन और कार्बन डाइआक्साइड का सन्तुलन बना रहता है। इस सन्तुलन को बनाये रखने के लिए वनों की हमारे जीवन में महती उपयोगिता है।
मनुष्य अपनी आवश्यकता-पूर्ति के लिए वनों को काटता है, परिणामस्वरूप पर्यावरण में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती जा रही है। इनके प्रभाव से पत्तियों के किनारे और नसों के मध्य का भाग सूख जाता है। वायु प्रदूषण (Pollution) से मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे श्वसन सम्बन्धी बहुत से रोग पैदा हो जाते हैं। फेफड़ों का कैंसर, अस्थमा तथा फेफड़ों से सम्बन्धित रोग फैलते हैं।

(2) Water pollution - जल प्रदूषण 
जल में अनेक प्रकार के खनिज तत्त्व, कार्बनिक-अकार्बनिक पदार्थ तथा गैसें घुली रहती हैं। यदि जल में ये पदार्थ आवश्यकता से अधिक मात्रा में इकट्ठे हो जाते हैं तो जल प्रदूषित हो जाता है और पीने वालों के लिए अनेक प्रकार के रोगों का कारण बन जाता है।

(3) Radioactive pollution रेडियोधर्मी प्रदूषण
परमाणु शक्ति उत्पादन केन्द्रों तथा परमाणु-परीक्षण से जल, वायु तथा पृथ्वी सबमें प्रदूषण होता है। विस्फोट के स्थान पर तापक्रम इतना बढ़ जाता है कि धातु तक पिघल जाती है। इससे रेडियोधर्मी पदार्थ वायुमण्डल में प्रवेश कर जाते हैं। ये ठोस रूप धारण कर बहुत छोटे-छोटे धूल कणों के रूप में वायु के झोंकों के साथ समस्त संसार में फैल जाते हैं।

(4) Noise pollution ध्वनि प्रदूषण-
नगरों में रेलगाड़ियों, बसों आदि वाहनों, कल-कारखानों तथा लाउडस्पीकरों आदि की तेज आवाज से ध्वनि प्रदूषण होता है। ध्वनि की लहरें जीवधारियों को प्रभावित करती हैं। इससे सुनने की शक्ति नष्ट हो जाती है, नींद न आना तथा नाड़ी- संस्थान सम्बन्धी रोग और कभी-कभी पागलपन भी हो जाता है।

(5)Chemical Pollution रासायनिक प्रदूषण-
कृषक अपनी फसलों में कीटनाशक औषधियों का प्रयोग करते हैं। आजकल तो गेहूँ जैसे खाद्यान्नों
में भी इस प्रकार की दवाइयों को रखा जाने लगा है। इन दवाइयों के अंधा-धुंध प्रयोग से मानव तथा पक्षियों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रदूषण पर नियन्त्रण-

औद्योगीकरण तथा जनसंख्या की वृद्धि ने संसार के सामने प्रदूषण की गम्भीर समस्या उत्पन्न कर दी है। इस समय हमारे देश में इस समस्या से निबटने के लिए सरकार द्वारा अनेक प्रयास किये जा रहे हैं। जल प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण के लिए भारत सरकार ने 1974 ई० में जल प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण अधिनियम लागू किया था।

इस दिशा में गंगा परियोजना के अन्तर्गत गंगा के प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया जा रहा है।
उद्योगजन्य प्रदूषण को रोकने हेतु अब सरकार की नीति है कि किसी नये उद्योग को तभी लाइसेन्स दिया जायेगा जबकि वहाँ औद्योगिक कचरे के निस्तारण हेतु समुचित व्यवस्था कर ली गयी हो। इसके अतिरिक्त वनों की अनियन्त्रित कटाई को रोकने के लिए कठोर नियम बनाये गये हैं। लोगों को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
इस प्रकार हमारी सरकार पर्यावरण प्रदूषण Environmental Pollution की रोकथाम के लिए दृढ़ता से तत्पर है।

essay on sports in hindi

Essay On My Favorite Game In Hindi, essay on sports in hindi,(खेल पर निबंध )

Mera Priya Khel Par Nibandh

(मेरा प्रिय खेल पर निबंध )


निबंध 

रूपरेखा-

1. प्रस्तावना. 2. आवश्यकता, 3. खेलों से लाभ, 4. शिक्षा और खेल, 3. उपसंहार ।

प्रस्तावना-

आज का युग खेलों का युग है। अखबार, रेडियो तथा सिनेमा आदि हर जगह खेलों को स्थान दिया जाता है।जीवन की सफलता के लिए शरीर और मन का स्वस्थ होना आवश्यक है। शिक्षा से यदि मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है,

खेलों से शारीरिक स्वास्थ्य। शरीर की अस्वस्थता में मन का स्वस्थ रहना असम्भव है। इस दृष्टि से शिक्षा में खेलों को विशेष महत्त्व प्रदान किया गया है। खेल विद्यार्थी का जीवन है। इसके अभाव में विद्यार्थी निष्क्रिय, आलसी एवं निराश हो जाता है। शिक्षा में खेलों का कितना महत्त्व है, इस विषय पर कुछ विचार कर लेना आवश्यक है।

जीवन में खेलों का आवश्यकता-

शिक्षा के क्षेत्र में खेलों की बहुत आवश्यकता है। विद्यार्थी का काम रात-दिन केवल किताबें रटकर पास होना ही नहीं है अपितु शरीर को स्वस्थ रखना भी उतना ही आवश्यक है जितना कि पढ़ना। जो विद्यार्थी अध्ययन के साथ खेलों में भाग नहीं लेते हैं, वे कागजी पहलवान रह जाते हैं। उनकी दशा देखकर बड़ी दया आती है। यदि वे अपना कुछ समय खेल में भी लगाते तो उनकी यह दयनीय दशा कभी न होती। पढ़ते-पढ़ते थक जाने पर मस्तिष्क को फिर से ताजा बनाने के लिए खेल कूद आवश्यक हैं।

प्राय: खेल में भाग लेने वाले विद्यार्थी पढ़ने निपुण होते हैं। वास्तव में खेल के महत्त्व को खिलाड़ी ही समझ सकते हैं। जब खिलाड़ी खेल के मैदान में आता है, उस समय वह संसार के झंझटों से मुक्त हो जाता है। उसका लक्ष्य खेलना होता है-बस खेलना और कुछ नहीं। खिलाड़ियों के सुन्दर शारीरिक गठन को देखकर खेलों के महत्व को समझा जा सकता है। खेलों के महत्त्व को दृष्टि में रखकर ही स्कूलों व कालिजों में अध्ययन के साथ-साथ खेलों को विशेष स्थान दिया गया है।

परन्तु खेल केवल खेल की भावना से खेलने चाहिए। हार और जीत का खेल में कोई महत्त्व नहीं होता। खेल को जीतने से खिलाड़ी को शिक्षा मिलती है कि जीवन में सफलता पर घमंड नहीं करना चाहिए। खेल की हार खिलाड़ी को असफलता में हिम्मत न हारने की प्रेरणा देती है।

खेलों से लाभ-

खेलों से हमें बहुत-से लाभ होते हैं। खेलने वाले छात्र को आलस्य नहीं घेर पाता। खेलों से बुद्धि विकसित होती है और शरीर सुन्दर एवं सुगठित हो जाता है। अनुशासन की भावना पैदा होती है। सहपाठियों में प्रेम का संचार होता है। कार्य को शीघ्रता से करने की आदत पड़ जाती है। ईमानदारी व न्याय से कार्य करने की शिक्षा मिलती है। शरीर स्वस्थ होने से विद्याध्ययन में खूब मन लगता है। महात्मा गांधी कहा करते थे--"स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क वास करता है।' इनके अतिरिक्त खेलों से और भी लाभ होते हैं, यथा घमण्ड न करना, हारने पर भी हिम्मत न हारना आदि।

शिक्षा और खेल-

शिक्षा में खेलों का विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन दोनों का साथ-साथ चलना अधिक लाभदायक है।केवल शिक्षा ग्रहण करने वाला मनुष्य डरपोक, दुर्बल, आलसी तथा कायर बन जाता है। इस प्रकार केवल खेलों में भाग लेने वाला व्यक्ति भी अपने जीवन में सफल नहीं हो पाता। यदि शिक्षा और खेल दोनों का उचित मेल कर दिया जाये तो सोने में सुगन्ध हो जायेगी। आजकल ऐसी शिक्षा पद्धति का आविष्कार हो रहा है जिसमें खेल के माध्यम से शिक्षा दी जाती है।

क्योंकि बचपन में बालक पढ़ाई की अपेक्षा खेल को अधिक पसन्द करते हैं। बच्चा निष्क्रिय होकर नहीं बैठ सकता। उसे ऐसा काम मिलना चाहिए जिससे वह सक्रिय रह सके। इसके लिए शिक्षा में खेल पद्धति को अपनाया गया है। कहने का तात्पर्य यह है कि शिक्षा और खेल में परस्पर गहरा सम्बन्ध है।

उपसंहार-

मनुष्य अपने जीवन काल में सदा कुछ न कुछ सीखता ही रहता है। विद्यार्थी जितना खेल के मैदान में जाकर सीखते हैं, शायद उतना स्कूल की कक्षाओं में न सीखते हों। स्कूल का वातावरण बन्धन और भय का होता है, जबकि खेल के मैदान का वातावरण प्रेम और स्वतन्त्रता का होता है। वहाँ बच्चे पर किसी का दबाव नहीं होता। खेल के मैदान में वह जो कुछ ग्रहण करता है. वह चिरस्थायी होता है। स्पष्ट है कि शिक्षा में खेलों को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त होना चाहिए,

जिससे विद्यार्थी का चहुँमुखी विकास हो सके। हमें उत्कृष्ट खेल भावना से खेलों में भाग लेना चाहिए। स्वस्थ रहते हुए सौ वर्ष जीने की इच्छा पूर्ण करनी चाहिए।


गुरुवार, 13 मई 2021

प्रो जी सुन्दर रेड्डी का जीवन परिचय

प्रो जी सुन्दर रेड्डी का जीवन परिचय

(Proji sunder reddy ka jivan parichay)

प्रो•जी• सुन्दर रेड्डी 

जीवन परिचय - 

प्रो• जी• सुन्दर रेड्डी का जन्म सन 1919 में दक्षिण भारत में हुआ था|हिन्दी के अतिरिक्त इनका अधिकार तमिल तथा मलयालम भाषाओ पर भी था|इन्होने बत्तीस वर्षो से भी अधिक समय तक आंध्र विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष पद को सुशोभित किया |

साहित्यिक परिचय - 

प्रोफेसर जी• सुन्दर रेड्डी की साहित्यिक सेवा, साधना और निष्ठा सभी कुछ प्रशंसनीय है | यघपि आप हिन्दीतर प्रदेश के निवासी है | तथापि हिन्दी भाषा पर आपका अच्छा अधिकार है | आप के हिन्दी और तेलुगु एक तुलनात्मक अध्ययन में साहित्य की प्रमुख प्रवित्तीयों तथा प्रमुख साहित्यकारों का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है | तमिल, तेलुगु और मलयालम दक्षिण भारत की चार प्रमुख भाषायें हैं | आप ने इन चारो में ही साहित्य रचना की तथा इन चारों भाषा के साहित्यों का इतिहास प्रस्तुत करके अपनी प्रखर प्रतिभा का परिचय दिया हैं | आप की इस कृति के सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व राज्यपाल डॉक्टर बी• गोपाल रेड्डी ने लिखा हैं कि यह ग्रन्थ तुलनात्मक अध्ययन के क्षेत्र का पथ-प्रदर्शन हैं | 

रचनाएँ -  

रेड्डी जी की अभी तक निम्नलिखित रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं -

  • साहित्य और समाज 
  • मेरे विचार 
  • हिन्दी और तेलुगु : एक तुलनात्मक अध्ययन 
  • दक्षिण की भाषायें और उनका साहित्य 
  • वैचारिकी शोध और बोध 
  • तेलुगु - वेलुगु दारुल 
  • लेंग्वेज प्रोब्लम इन इंडिया (सम्पादित अंग्रेजी  ग्रन्थ ) आदि 


Jivan Parichay In Hindi,Jeevan Parichay for class 6, class 7,class 8, class 9, class 10, class 11, class 12, in hindi,

Jivan Parichay In Hindi (जीवन परिचय )

Jeevan Parichay for class 6, class 7,class 8, class 9, class 10, class 11, class 12, in hindi,


जीवन परिचय-

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जीवन परिचय 

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय 

डॉ• राजेन्द्र प्रसाद का जीवन परिचय 

डॉ• भगवतशरण उपाध्याय का जीवन परिचय 

सूरदास का जीवन परिचय 

तुलसीदास का जीवन परिचय 

रसखान का जीवन परिचय 

बिहारीलाल का जीवन परिचय 

सुमित्रानन्दन पन्त का जीवन परिचय 

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय 

रामनरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय 

माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय 

सुभद्राकुमारी चौहान का जीवन परिचय 

मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय 

अशोक वाजपेयी का जीवन परिचय 

श्यामनारायण पाण्डेय का जीवन परिचय 


Karun Ras In Hindi,Karun Ras Example In Hindi

करुण रस की परिभाषा और उदाहरण |

Karun Ras In Hindi | Karun Ras Example In Hindi 


करुण रस- के परिभाषा|

परिभाषा- इसका स्थायी भाव 'शोक' है। जहाँ 'शोक' नामक स्थायी भाव विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारी भावों के संयोग से रस रूप में परिणत हो, वहाँ 'करुण' रस होता है।


करुण रस के उदाहरण| 

उदाहरण-

हा! बृद्धा  के  अतुल धन हा ! वृद्धता के सहारे!
हा! प्राणों के परम प्रिय हा! एक मेरे दुलारे!
हा! शोभा के सदन सम हा! रूप लावण्य हारे। 
हा। बेटा हा! हृदय धन हा! नेत्र तारे हमारे!
यह यशोदा के शोक का वर्णन है।


  • जथा पंख बिनु खग अति दीना।
  • मनि बिनु फनि करिवर कर हीना॥
  • अस मम जिवन बन्धु बिनु तोही।
  • जो जड़ दैव जिआवै मोही॥


  • प्रियपति वह मेरा प्राण प्यारा कहाँ है?
  • दु:ख जलनिधि डूबी का सहारा कहाँ है?
  • लख मुख जिसका मैं, आज लौं जी सकी हूँ,
  • वह हृदय दुलारा नैन तारा कहाँ है?


  • कौरवों का श्राद्ध करने के लिए,
  • या कि रोने को चिता के सामने।
  • शेष अब है रह गया कोई नहीं,
  • एक वृद्धा एक अंधे के सिवा ॥


  • “शोक विकल सब रोवहिं रानी।
  • रूप, शील, बल तेज बखानी।"
  • करहि विलाप अनेक प्रकारा।
  • परहि भूमि तल बारहि बारा॥


  • हे खग मृग हे मधुकर बेनी।
  • तुम देखी सीता मृगनैनी॥


  • राम-राम कहि राम कहि,
  • राम-राम कहि राम।
  • तन परिहरि रघुपति विरह राउ गयउ सुरधाम॥


  • मम अनुज पड़ा है चेतनाहीन होके,
  • तरल हृदय वाली जानकी भी नहीं है।
  • अब बहु दु:ख से अल्प बोला न जाता,
  • क्षण भर रह जाता है न उद्विग्नता से॥


  • चहुँ दिसि कान्ह-कान्ह कहि टेरत,
  • अँसुवन बहत पनारे।  


मैथिलीशरण गुप्त

मैथिलीशरण गुप्त 

जीवन परिचय -

हिन्दी साहित्य के गौरव राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त का जन्म सन 1886 ई• में चिरगाँव जिला झाँसी के एक प्रतिष्ठत वैश्य परिवार में हुआ था|आप के पिता सेठ रामशरण गुप्त हिन्दी के अच्छे कवि थे| पिता से ही आपको कविता की प्रेरणा प्राप्त हुई| द्विवेदी जी से आपको कविता लिखने का प्रोत्साहन मिला और सन 1899 ई• में आपकी कवितायें सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित होनी शुरू हो गयी वीर बुन्देलों के प्राप्त में जन्म लेने के कारण आपकी आत्मा और प्राण देशप्रेम में सराबोर थे यही राष्ट्रप्रेम आपकी कविताओं में सर्वत्र प्रस्फुटित हुआ है आपके चार भाई और थे सियारामशरण गुप्त आपके अनुज हिन्दी के आधुनिक कवियों में विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान रखते है गुप्त जी की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई उसके बाद अंग्रेजी की शिक्षा के लिए झांसी भेजे गये परन्तु शिक्षा का क्रम अधिक न चल सका घर पर ही आपने बंगला संस्कृति और मराठी का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी के आदेशानुसार गुप्त जी ने सर्वप्रथम खड़ी बोली में भारत - भारती नामक राष्ट्रीय भावनाओं से पूर्ण पुस्तक की रचना की सांस्कृतिक तथा राष्ट्रीय विषयों पर लिखने के कारण वे राष्ट्रकवि कहलाये साकेत काव्य पर आपको हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने मंगलाप्रसाद परितोषिक प्रदान किया था | गुप्त जी को आगरा विश्वविद्यालय ने डी• लिट्• की मानद उपाधि से अलंकृत किया सन 1954 ई• में भारत सरकार ने पद्म भूषण के अलंकरण से इन्हे विभूषित किया वे दो बार राज्यसभा के सदस्य भी मनोनीत किये गये थे सरस्वती का यह महान उपासक 12 दिसम्बर सन 1964 ई• को परलोकगामी हो गये |

रचनाएँ -

इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित है |
मौलिक रचनाएँ 

  • रंग में भंग 
  • जयद्रथ वध 
  • पद्य प्रबन्ध 
  • भारत - भारती 
  • शकुन्तला 
  • पद्मावती 
  • वैतालिकी 
  • किसान 
  • पंचवटी 
  • स्वदेश संगीत 
  • अनूदित रचनाएँ -
  • विरहिणी ब्रजांगना
  • मेघनाद वध 
  • हिडिम्बा 
  • प्यासी का युद्ध 
  • उमर खैयाम की रुबाइयाँ  



बुधवार, 12 मई 2021

Essay On Diwali In Hindi, Diwali Par Nibandh

दीपावली पर निबंध

(Essay On Diwali In Hindi, Diwali Nibandh In Hindi 100-200-300-500 Words)

निबंध 

रूपरेखा-

1. प्रस्तावना, 2. मनाने का समय, 3. मनाने के कारण, 4. मनाने का ढंग, 5. लाभ, 6. दुष्प्रवृत्तियाँ, 7. उपसंहार

प्रस्तावना-भारतवर्ष में अनेक त्योहार मनाये जाते हैं। इनमें से कुछ धार्मिक हैं, कुछ सांस्कृतिक, कुछ सामाजिक और राष्ट्रीय त्योहार हैं। इनमें से दीपावली एक बहुत बड़ा धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक पर्व है।


 शब्द का अर्थ होत है-दीपकों की पंक्ति। दीपकों की पंक्ति जलाकर यह त्यौहार मनाया जाता है। इसीलिए इसका नाम दीपावली है।

इसी "दीपमालिका अथवा 'दीवाली' भी कहा जाता है।मनाने का समय-शरद ऋतु के सुहावने समय में यह महान पर्व प्रति वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। सभी के मन में एक विशेष उल्लास रहता है।

मनाने के कारण- दीपावली के मनाये जाने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

1. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचन्द्र दुष्ट रावण का वध करके कार्तिक महीने की अमावस्या को लक्ष्मण और सीता के साथ अयोध्या लौटे थे। उनके आगमन की खुशी में उनके स्वागतार्थ दीपकों की सजावट की गयी। तभी से यह पर्व इस रूप प्रति वर्ष मनाया जा रहा है।

2. जैन धर्म के प्रचारक भगवान महावीर ने आज ही के दिन सांसारिक बन्धनों का त्याग करके मुक्ति प्राप्त की थी। उसी समय जनता ने दीपमालाएँ जलाकर उनके निर्वाण पद पाने की खुशी मनायी थी।

3. पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन लक्ष्मी का अवतार हुआ था; अत: इस दिन विशेष रूप से लक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है।

4. आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इसी पुण्य दिवस को मोक्ष प्राप्त किया था। अत: आर्यसमाजी उनकी याद में उत्साह से इस पर्व को मनाते हैं।

5. सिक्खों के छठे गुरु हरगोविन्द सिंह ने इसी दिन कारावास से मुक्ति प्राप्त की थी।

इस प्रकार अनेक कड़ियाँ इस पर्व से जुड़ती जा रही हैं जिससे इस पर्व का महत्त्व और बढ़ता ही जा रहा है।

मनाने का ढंग- मुख्य पर्व आने से दस-पन्द्रह दिन पहले से ही इसकी तैयारियाँ आरम्भ होने लगती हैं। सफेदी, रोगन आदि के द्वारा घरों को स्वच्छ कर दिया जाता है। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को छोटी दीवाली मनायी जाती है, इसे नरक-चतुर्दशी भी कहते हैं। इसी दिन भगवान कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध किया था। छोटी दीवाली से पहले दिन धन्वन्तरि त्रयोदशी मनायी जाती है। इस त्यौहार को वैद्य लोग अधिक उत्साह से मनाते हैं। आयुर्वेद के प्रवर्तक भगवान धन्वन्तरि का अवतार इसी दिन हुआ था।

अमावस्या को दीवाली का मुख्य पर्व होता है। फोटो, कैलेण्डर, झाड़-फानूस आदि से घर सजाये जाते हैं। हलवाइयों की दुकानें रंग-बिरंगी मिठाइयों से सजायी जाती हैं। बाजारों में स्थान-स्थान पर खील, बताशों, मिट्टी के खिलौनों, मोमबत्तियों और पटाखों के ढेर लगे हुए होते हैं।

सन्ध्या आते ही दीपकों, मोमबत्तियों तथा बिजली के बल्बों से सारा शहर जगमगा उठता है। गणेश तथा लक्ष्मी जी का पूजन प्रारम्भ हो जाता है। सम्बन्धियों और मित्रों के यहाँ मिठाइयाँ भेजी जाती हैं। घरों में पूड़ी-पकवान तथा अनेक प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाये जाते हैं।

लाभ- इस पर्व को मनाने से कई लाभ होते हैं। वर्षा ऋतु में रोग के कीटाणु उत्पन्न हो जाते हैं। मकानों की सफाई, होने तथा सरसों के तेल धुएँ से रोग के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इस त्यौहार से दुकानदारों को विशेष लाभ होता है। बच्चों का खूब मनोरंजन होता है।

दुष्प्रवृत्तियाँ- इस पवित्र पर्व में कुछ दुष्प्रवृत्तियाँ भी आ गयी हैं। इस दिन कुछ लोग जुआ खेलते हैं, ऐसे लोगों के लिए दीवाली पर्व न होकर दीवाला बन जाती है। कुछ लोग शराब पीकर इस पर्व को गन्दा करते हैं।

उपसंहार- सारे भारत में यह त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। दीवाली से अगले दिन गोवर्धन पूजा और उससे भी अगले दिन भैया दूज को भाई-बहिन का मिलन त्यौहार होता है। इस प्रकार चार-पाँच दिन तक हर्ष एवं उल्लास का वातावरण बना रहता है। वास्तव में यह त्यौहार हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है।


Berojgari par nibandh

Berojgari par nibandh in hindi बेरोजगारी पर निबंध Essay on Unemployment in hindi बेरोजगारी की समस्या पर निबंध रूपरेखा- 1. प्रस्तावना, 2, बेर...