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मंगलवार, 25 मई 2021

Berojgari par nibandh

Berojgari par nibandh in hindi

बेरोजगारी पर निबंध

Essay on Unemployment in hindi

बेरोजगारी की समस्या पर निबंध


रूपरेखा-

1. प्रस्तावना, 2, बेरोजगारी का अर्थ एवं प्रकार, 3. बेरोजगारी के कारण, 4. बेरोजगारी दूर करने के उपाय, 5. उपसंहार।


प्रस्तावना-

स्वतन्त्रता-प्राप्ति के सत्तर वर्ष पश्चात भी हम अनेक राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का पूर्ण समाधान नहीं खोज पाये हैं। इस प्रकार की समस्याओं में बेरोजगारी एक ऐसी समस्या है जो दिन-प्रतिदिन उग्र से उग्रतर होती जा रही है। सरकार, परिवार और व्यक्ति सभी स्तरों पर इस समस्या की जटिलता को अनुभव तो किया जा रहा है परन्तु भरसक प्रयास करने पर भी यह समस्या सुलझ नहीं पा रही है।

बेरोजगारी का अर्थ एवं प्रकार-

बेरोजगारी (Unemployment) का अर्थ है-इच्छा एवं योग्यता होते हुए भी व्यक्ति को उचित रोजगार का न मिलना। आज हमारे समाज में हजारों-लाखों ऐसे नवयुवक हैं जो ऊँची से ऊँची शिक्षा और योग्यता प्राप्त करने के बाद भी नौकरी की तलाश में मारे-मारे फिरते हैं अथवा अपनी योग्यता के अनुसार नौकरी और वेतन न पाकर किसी छोटी-मोटी नौकरी और नाममात्र का वेतन पाकर जैसे-तैसे दिन काट रहे हैं।

बेरोजगारी को हम पढ़े-लिखों और अनपढ़ लोगों की बेरोजगारी ( Berojgari ) के रूप में भी विभाजित कर सकते हैं और इसे पूर्ण बेरोजगारी तथा आंशिक बेरोजगारी के रूप में भी विभाजित कर सकते हैं।

आंशिक बेरोजगारी में व्यक्ति सं तो पूर्णकालिक स्थायी नौकरी पाता है और न अपनी योग्यता और सामर्थ्य के अनुसार वेतन पाता है। आंशिक रोजगार युवकों की विवशता बन गयी है अत: इसे भी एक तरह से पूर्ण बेरोजगारी ही समझना चाहिए।

बेरोजगारी के कारण-

अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों और राजनीतिज्ञों ने इस समस्या पर विचार करते हुए इसके कारणों पर भी गम्भीरता से विचार किया है। इन कारणों में से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं


  • जनसंख्या में अनियन्त्रित वृद्धि - प्रतिवर्ष बढ़ने वाली जनसंख्या के अनुपात में बेरोजगार युवक-युवतियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि प्रयास किये जाने पर भी बेरोजगारी की समस्या हमारे सम्मुख सुरसा के मुख की भाँति बढ़ती ही जा रही है।

  • यन्त्रीकरण एवं औद्योगीकरण- स्वचालित मशीनों और कम्प्यूटर के समावेश से बेरोजगार युवक-युवतियों की एक बड़ी फौज पैदा हो गयी है। समस्या के इस पक्ष को समझ कर ही हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने चरखे को प्रतीक बना कर लघु और अतिलघु उद्योग-धन्धों को अपनाने की प्रेरणा दी थी। परन्तु हम राष्ट्रपिता की जय-जयकार करके ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझने लगे और उनकी शिक्षाओं को उठाकर हमने ताक पर रख दिया।

  • दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति - अंग्रेजों द्वारा संचालित शिक्षा पद्धति थोड़े-बहुत संशोधन और परिवर्धन के साथ आज भी प्रचलित है। इसने व्यक्ति को शिक्षित बना कर साहब (काम को अपमान समझने वाला) बना दिया। शिक्षा भी ऐसी दी गयी जिसके द्वारा धनोपार्जन की कोई पद्धति नहीं सिखाई गयी।

बेरोजगारी दूर करने के उपाय -

इम समस्या के समाधान का एकमात्र उपाय यह है कि इसको जन्म देने और बढ़ाने वाली स्थितियों को बदल दिया जाये। बेरोजगारी दूर करने के लिए निम्नलिखित प्रयास किये जा सकते हैं

  • जनसंख्या नियन्त्रण - हमारे देश में अनेक सामाजिक और आर्थिक समस्याओं के समान बेरोजगारी की समस्या का समाधान भी जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए परिवार कल्याण कार्यक्रमों को लागू करके सम्भव हो सकता है।

  • कृषि आधारित उद्योग - धन्धों का विकास-भारत एक कृषि-प्रधान देश है। यहाँ की अधिकांश जनता ग्रामों में रहकर कृषि को ही व्यवसाय बना कर उस पर आश्रित रहती है। अत: बेरोजगारी की समस्या का समाधान कृषि के विकास और उस पर आधारित कुटीर उद्योग और लघु उद्योगों के विकास से भी सम्भव हो सकता है।

  • आधारभूत सुविधाओं का विकास - आधारभूत सुविधाओं, जैसे-सड़कों, सिंचाई के लिए नहरों और रहने के लिए मकानों आदि की पर्याप्त सुविधा के विकास से नवयुवकों को रोजगार के नये अवसर प्राप्त होंगे और देश का आर्थिक विकास सम्भव होगा।

  • शिक्षा पद्धति - वर्तमान शिक्षा को रोजगारोन्मुख बनाने की आवश्यकता है। अब वह समय आ गया है जब युवक-युवतियों को व्यवसाय सम्बन्धी शिक्षा देकर उन्हें अपनी आजीविका कमाने योग्य बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए।

उपसंहार-

बेरोजगारी देखने में तो केवल एक आर्थिक समस्या नजर आती है परन्तु इसका सम्बन्ध समाज की शान्ति-व्यवस्था और युवकों के मनोविज्ञान से भी है। रोजगार के अभाव में नवयुवकों में लूट-खसोट आदि अपराधों की वृत्ति बढ़ती जा रही है और दूसरी ओर उनमें निराशा और आक्रोश पनप रहा है; अत: आवश्यक है कि सभी मिलकर इस समस्या के समाधान के लिए शीघ्रातिशीघ्र भरसक प्रयत्न करें




सोमवार, 24 मई 2021

Desh prem par nibandh

देश-प्रेम पर निबंध

Desh prem par nibandh


रूपरेखा-

1. देश-प्रेम की महता, 2. देश-प्रेम की स्वाभाविकता, 3. देश के प्रति हमारा कर्तव्य, 4. उपसंहार।

देश-प्रेम की महत्ता-

देश-प्रेम (Desh Prem) की भावना मनुष्य जीवन के लिए अनिवार्य एवं महत्त्वपूर्ण है। जिस प्रकार मनुष्य अपने प्रेम और त्याग से अपने आपको, अपने परिवार को पोषित करता है, उसी प्रकार प्रेम और बलिदान के द्वारा वह अपने देश की रक्षा करता है। ऐसे ही बलिदानी पुरुषों के बल पर कोई भी राष्ट्र फलता-फूलता है। राणा प्रताप और महात्मा गांधी आदि ऐसे ही देशभक्त हैं। जिम मातृभूमि के अन्न, जल, वस्त्रों से हमारा पालन-पोषण हुआ, जिसकी पावन रज में खेल-कूद कर इतने बड़े हुए. जिन भी के निवामियों के मुम्ब और दुख में हमारा गहरा सम्बन्ध है, उस स्वर्गादपि गरीयमी जन्मभूमि के दर्शन-मात्र से आनन्दमय ही जाना एक स्वाभाविक सी बात है। देश-प्रेम (Desh Prem) की भावना से ओत-प्रोत कविवर मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियाँ देखने योग्य है

जिसकी रज में लोट-लोट कर बड़े हुए है

घुटनों के बल सरक-सरक कर खड़े हुए है

परमहंस सम बाल्यकाल में सब सुख पाये

जिसके कारण धूलि भरे हीरे कहलाये 

हम खेले कूद हर्ष युत, जिसकी प्यारी गोद में।

हे मातभूमि! तमको निरख मग्न क्यों न हो मोद में।

वास्तव में जिम मानव के हृदय में स्वदेश का प्यार नहीं. वह हृदय नहीं पाषाण है

'भरा नहीं जो भावों से, बहती जिसमें रमधार नहीं।

वह हृदय नहीं है, पत्थर है. जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ।”

देश-प्रेम (Desh Prem) की स्वाभाविकता-

मातृभूमि के प्रति मनुष्य के हृदय में प्रेम (Prem) होना एक स्वाभाविक बात है। जिस प्रकार स्नेहमयी माता के प्रति स्वाभाविक अनुराग होता है उसी प्रकार आनन्ददायिनी मातृभूमि के प्रति मानव-हृदय में प्रेम की निर्मल गंगा स्वनः प्रवाहित होती है। देश-प्रेम की इस पवित्र गंगा में नहाकर मानव का शरीर ही नहीं, उसकी आत्मा भी पवित्र हो जाती है।

जिम मातृभूमि ने हमें जन्म दिया, हमारा पालन-पोषण किया, उम माता तुल्य मातृभूमि के प्रति जिसके हृदय में प्रेम की सरिता नीरस हो जाये, वह मनुष्य नहीं, उस पशु के समान है जिसमें दया, प्रेम आदि कोमल भावनाओं का विकास नहीं होता। गुप्त जी ने ठीक ही कहा है

जिसको न निज भाषा तथा निज देश का अभिमान है।वह नर नहीं, नर पशु निरा है, और मृतक समान है।"

विश्व के सभी देशों में सदैव से देशभक्त होते आये हैं और होते रहेंगे। इस पवित्र भावना से प्रेरित हो स्वतन्त्रता संग्राम में लाखों भारतीयों ने हंसते-हसते अपने प्राणों का बलिदान चढ़ा दिया। इसी पवित्र भावना के जाग्रत होने पर विगत महायुद्ध में एक

जापानी देशभक्त ने अपने प्राणों का बलिदान चढ़ाया और शत्रु के 'प्रिंस आफ वेल्म नामक जलीय जंगी जहाज का विध्वंस कर दिया था। देश-प्रेम की भावना के कारण ही इंग्लैण्ड के निवासियों ने देश-हित के लिए अपना सब कुछ अर्पण कर दिया था।

देश प्रेम के प्रति हमारा कर्तव्य-

जिस देश की भूमि ने हमें जन्म दिया, जिसके अमृत सम अन्न एवं जल ग्रहण कर हम बड़े हुए, जिसकी गोदी में खेलकर हम हृष्ट-पुष्ट हुए उस प्राणप्रिय देश के उपकारों का बदला कभी चुकाया नहीं जा सकता, अत: हमारा कर्तव्य है कि हम अपने देश के लिए बड़े से बड़ा बलिदान करने को तैयार रहें। अपने देश की एक-एक इंच भूमि के लिए अपने देश के सम्मान और गौरव की रक्षा के लिए प्राणों की बाजी लगा देना प्रत्येक देशवासी का पुनीत कर्तव्य होता है।

जिस धरती की छाती का रस पीकर हम जीवन धारण करते हैं. संकट में उसकी रक्षा के लिए जो अपना सर्वस्व देकर भी उसकी आन न बचाये, उसमे कृतघ्न कोई हो नहीं सकता। कवि का यह कथन कितना उपयुक्त है

पैदा कर जिस देश जाति ने तुमको पाला-पोसा.

किये हुए है वह निज-हित का तुमसे बड़ा भरोसा।

उससे होना उऋण प्रथम है सत्य कर्तव्य तुम्हारा,

फिर दे सकते हो वसुधा को शेष स्वजीवन सारा।"

भगवान राम को अपनी मातृभूमि के सामने बैकृष्ट का सुख भी तुच्छ दिखाई पड़ता था

यद्यपि सब बैकृष्ट, बखाना, वेद पुरान विदित जग जाना।

अवध सरिस प्रिय मोहि नहि सोऊ, यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ॥"

देश-प्रेम की यह भावना भारतीय संस्कृति का प्राण है।

उपसंहार-

वास्तव में देश-प्रेम (Desh Prem) वह पवित्र भावना है जो मानव में आत्म-गौरव और आत्म-विश्वास को जगाती है। यही वह भावना है जिसके कारण कोई देश उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच जाता है और जिसके अभाव में पतन के गर्त में गिर जाता है। जिस मनुष्य में आत्माभिमान तथा अपने देश के प्रति सम्मान की भावना नहीं है. उसे मनुष्य कहलाने का अधिकार ही नहीं है 


बुधवार, 19 मई 2021

बाढ़ पर निबंध

Essay on flood in hindi

बाढ़ पर निबंध हिन्दी में


रूपरेखा-

1. प्रस्तावता. 2. तीन जलवृष्टि 3. बाढ़ की चेतावनी, 4. जल-विस्तार, 5. जल की व्यापकता एवं गम्भीरता, 6. करुणापूर्ण स्थिति 7. सहायता कार्य, 8. हानियाँ, 9. उपसंहार।


प्रस्तावना-

भारत में क्षण-क्षण पर प्रकृति के विविध रूप देखे जा सकते हैं। एक ओर हरे-भरे जंगल, लहराते खेत, रंग-बिरंगे पुष्प आदि का अपार सौन्दर्य फैला है तो दूसरी ओर ऊबड़-खाबड़ जमीन, दुर्गम चट्टानें कैंटीले तथा कंकरीले मार्ग हैं।

प्रकृति देवी प्रसन्न होती हैं तो झोली रत्नों से भर देती है और कुपित होती है तो सब कुछ नष्ट-भ्रष्ट कर देती है। जो वर्षा समय पर ठीक जाती है तथा धन-जन का विनाश कर डालती है। प्रकार आकर हरी-हरी फसलें उगाती है. वही असमय भयंकर रूप धारण कर फसल, घर, ग्राम, नगर आदि को बहाती हुई चली


तीन जलवृष्टि-

एक दिन दोपहर बाद अचानक ही बादल घिर आये। सभी ओर अँधेरा छा गया। कुछ ही क्षणों में तीव्र सभी भयभीत हो रहे थे। जल वृष्टि हाने लगी। लगातार शाम तक रात तक तथा प्रातः काल तक वर्षा होती रही। इस मूसलाधार वर्षा का पानी चारों ओर फैल गया। अपार जल राशि उमड़ रही थी। नाली-नाले, तालाब, नदी आदि सभी उफन पड़े।


बाढ़ की चेतावनी-

आगरा में इस वर्षा की विषमता की देखकर अधिकारियों ने नगरवासियों को अतिवृष्टि से होने वाले के प्रकोप की चेतावनी देना प्रारम्भ कर दिया। दिल्ली, मथुरा आदि यमुना किनारे के नगरों में बाढ़ आ गयी थी; अत: डयो, समाचार-पत्र, दूरदर्शन आदि में उन्हीं के साथ आगरा का भी नाम जुड़ गया। सभी से सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए कहा जा रहा था। क्योंकि कि यमुना का जलस्तर दिनदूना रात चौगुना बढ़ रहा था। यमुना जल के बहाव की तीव्रता देखकर


जलविस्तार-

आगरा तथा उसके चारों ओर पानी ही पानी दिखायी देता था। नगर के निचले भागों के घरों में पानी भरा था। अपार सामान, सम्पत्ति आदि डूब रही तथा बह रही थी। सभी ओर का पानी यमुना नदी में आ रहा था। अत: नदी में पानी इतनी तेजी से बढ़ा कि दोनों ओर के किनारों को डुबोकर बाहर फैलाने लगा। पीछे के जल के प्रवाहर से नदी का विस्तार मीलों चौड़ा हो गया जनता त्राहि मां, त्राहि मां कर रही थी तथा चारों ओर इस बाढ़ की ही भयकारिणी चर्चाएँ थीं। मैं भी अपने मित्रों के साथ बाढ़ का व्यापक रूप देखने चल दिया।


जल की व्यापकता एवं गम्भीरता-

हम सभी यमुना के नेहरू पुल पर पहुंचे। हमने जो लोगों से सुना था। उससे कई गुनी जल राशि वहाँ दिखायी दी। चारों ओर जल ही जल था। घर वृक्ष, सड़क आदि सभी पानी में निमग्न थे। हमने दूरबीन से देखा किन्तु कुछ ऐतिहासिक मीनारों की चोटियों के अतिरिक्त कुछ भी दिखायी नहीं पड़ रहा था। जल का जितना विस्तार था, उतनी हो गहराई भी थी। ऐसा लग रहा था कि मानों इन्द्र देवता सभी को समेटकर कहीं एक स्थान पर ले जाना चाहते हैं।


करुणापूर्ण स्थिति-

भयानक रूप में फैली बाढ़ को देखकर लगता था कि कोई देवी प्रकोप है जिससे धन तथा जन का बचपाना असम्भव है। हरी फसलें जल में बही चली जा रही थीं। किसानों की झोंपड़ी, वृक्ष, आदमी, पशु-पक्षी आदि इस जल प्रवाह में बहे जा रहे थे। अनेक प्रकार के क्रन्दनपूर्ण दृश्य दिखाई पड़ रहे थे। यह अप्रत्याशित घटना थी अत. अनेक लोग, गाँव घर तथा खेत इसकी चपेट में आ गये थे। डूबते हुए घरों से चीत्कार निकल रहा था। चारों ओर हाहाकार मचा था। सभी ओर विनाश का भयंकर ताण्डव नृत्य दिखायी पड़ रहा था।


सहायता कार्य-

अनेक समाज सेवी लोगों तथा संस्थाओं ने बाढ़ में सहायता कार्य करने प्रारम्भ कर दिये। बाढ़ में फंसे लोगों की सहायता हेतु नाव, स्टीमर डोंगी आदि नदी में प्रवेश कर रहीं थीं। उनमें खाने की सामग्री कपड़े आदि रखे थे। बहते हुए लोगों को निकाला जा रहा था। शासन की ओर से व्यक्ति बाढ़ से सुरक्षा करने के लिए कार्य कर रहे थे। सेना के जवान भी सभी उपकरणों सहित सहायता कर रहे थे। यह देखकर लग रहा था कि आज की व्यक्तिवादी दुनियाँ में भी सहृदय व्यक्तियों का अभाव नहीं है।


हानियाँ-

बाढ़ में धन-जन की अपार क्षति हो रही थी। हजारों मनुष्य स्त्री मर रहे थे। कुछ अपने परिवारों, घरों आदि से बिछुड़कर कहीं के कहीं पहुंच रहे थे। बच्चे माँ के लिए तथा बच्चों के लिए माँ आकुल-व्याकुल थीं। घर बहे चले जा रहे थे

गिर रहे थे तथा उनके नीचे आदमी, पशु दब रहे थे। भयानक जल राशि हरी-भरी खेती को रोंद रही थी। इस बाढ़ के कारण अनेक प्रकार की हानियाँ हो रही थीं।


उपसंहार-

इस भयंकर दृश्य को देखकर सभी की आँखों में आँसू भरे थे। सभी का मन उदास था। अन्तर को उद्वेलित करने वाली यह भयंकर विपत्ति ईश्वरीय प्रकोप का प्रत्यक्ष संकेत थी। रात्रि के समय पानी उतर गया। लगभग सभी मकानों की दीवारों में दरारें पड़ गई थीं। लकड़ी का सामान फूल गया था। कमरों के 'वुड वर्क' की हालत देखकर रोने के साथ हँसी भी आ रही थी। आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले कुछ निर्धन व्यक्ति काल-कवलित भी हो चुके थे।



मंगलवार, 18 मई 2021

sadak suraksha par nibandh

Sadak Suraksha Par Nibandh

( सड़क सुरक्षा पर निबंध )

रूपरेखा-

1. प्रस्तावना  2.यातायात के प्रमुख साधन, 3. सड़क के नियम एवं संकेत-(क) नियम, (ख) संकेत, 4.उपसंहार।

प्रस्तावना-

सुरक्षित जीवन के लिए सड़क के नियम एवं संकेतों का भलीभाँति पालन किया जाना आवश्यक है। सड़क के नियमों का सही प्रकार पालन करने से हम यातायात विषयक बढ़ती हुई दुर्घटनाओं से स्वयं को सुरक्षित रख सकते हैं। सड़कों पर यातायात के जोडले वाहनों की संख्या में वृद्धि तथा यातायात सम्बन्धी संकेतों के अभाव में अनहोनी दुर्घटनाएँ घट जाती हैं जिनसे मनुष्य की या सो घटनास्थल पर ही मृत्यु हो जाती है अथवा वह जीवनभर के लिए विकलांग बन जाता है। यह विकलांगता मनुष्य को जीवन भर उसको सहक के नियमों को अज्ञानता की याद दिलाती रहती है। इससे वह नित्य मर-मरकर जीते हुए अपना जीवन काटता है। प्रमुख साधन-मनुष्य के विकास के इतिहास में यातायात के साधनों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। पहिए के विकास से मानव जीवन के विकास की कहानी जुड़ी है। मनुष्य ने ज्यों-ज्यों अपने बुद्धि-बल का प्रयोग किया त्यों-त्यों उसने जातायात के साधन विकसित किये। पहले मनुष्य ऊंट, घोड़े, खच्चर, ताँगे तथा बैलगाड़ियों से यात्राएँ किया करता था। उसकी मात्रा समय एवं व्यय साध्य होती थी। इसके बाद तेज गति वाले वाहनों का विकास हुआ। मालवाहक ट्रक, मोटरसाइकिल,

स्कुटर, बस तथा रेल, ट्राम गाड़ियों की खोज भी मानव बुद्धि के ही चमत्कार हैं। पहले लोगों के पास साइकिल तक न थी, आज मोटर साइकिल तथा कारों की भरमार है। मानव जैसे-जैसे आर्थिक रूप से समान होता गया, वैसे-वैसे उसकी क्रयशक्ति बढ़ी और उसने विभिन्न प्रकार के वाहन खरीदना प्रारम्भ कर दिया। आज के समय से तो इनकी संख्या इतनी अधिक हो गयी है कि घर के प्रत्येक सदस्य को मोटर साइकिल अथवा कार की आवश्यकता पड़ने कमी है। भले ही बच्चे भलीभाँति कार चलाना न जानते हों लेकिन वे मोटर साइकिल अथवा कार लेकर सड़कों पर निकल पड़ते हैं। परिणाम होता है-भीषण दुर्घटना। तकनीकी विकास का भी इन दुर्घटनाओं के विकास में ब योगदान है।

सड़क के नियम एवं संकेत-(क) नियम-

यातायात के साधन जितने बढ़ रहे हैं, उतने ही यातायात के नियम बढ़ रहे हैं और उनमें जटिलता आ रही है।

सड़क यातायात के कुछ प्रमुख नियम इस प्रकार हैं 

  1. हम हमेशा सड़क के बायीं ओर चलें।
  2. पैदल चलने के लिए फुटपाथ का प्रयोग करें।
  3. सड़क पार करने हेतु 'ओवर ब्रिज' अथवा 'जेब्रा लाइन को अपनाएँ।
  4. वाहन मोड़ते समय यथासम्भव उचित संकेत देने का प्रयास करें, अचानक वाहन मोड़ना दुर्घटना का कारण बन जाता है।
  5. वाहन को चलाने में सावधानी अपनाएँ क्योंकि ‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।
  6. सड़क पर लगे निशान, चिह्नों तथा संकेतों का पालन करें।

(ख) सड़क सुरक्षा के कुछ संकेत-

सड़क पर चलने के सम्बन्ध में कुछ संकेत निर्धारित किये गये हैं जिनके पालन से हम दुर्घटना से बच सकते हैं। प्राय: शहरों में चौराहों पर लाल, पीली तथा हरी बत्तियाँ लगी रहती हैं। लाल बत्ती का अर्थ है-एकदम रुकिए और जब तक लाल बत्ती जलती रहे तब तक रुके रहें। पीली बत्ती जलने का अर्थ है-सब ओर चौकन्ने होकर देखिए तथा बढ़ने के लिए तैयार हो जाइए। हरी बत्ती जलने का अर्थ है-चलिए, आगे बढ़िए। कभी-कभी यातायात बहुत कम हो जाने पर अथवा लाल या हरी बत्तियों में किसी गड़बड़ी के कारण मात्र पीली बत्ती ही लगातार जलती-बुझती रहती है। यह इस बात का संकेत है कि सावधानीपूर्वक देखकर चलिए। इसी प्रकार यदि आगे मोड़ होता है तो उसका संकेत भी कुछ दूर पहले ही सड़क के किनारे बोर्ड पर अंकित रहता है। इसके अतिरिक्त स्कूल, अस्पताल, सड़क बन्द होने तथा आगे आने वाले मोड़ के संकेत भी इसी प्रकार के बोडों पर बने होते हैं। हमें इन संकेतों का ध्यान रखना चाहिए। पुल, फाटक आदि के संकेत भी सड़क के किनारे लगे रहते । जिनका पालन किया जाना परमावश्यक है।

उपसंहार-

यातायात के नियमों एवं संकेतों का पालन करना मानवता के हित में है। नियमों का पालना करना समाज, प्रदेश तथा राष्ट्र हितकारी होता है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर यातायात पुलिस तथा प्रदेश का पुलिस प्रशासन 'यातायात नियम सप्ताह आयोजित करते हैं। नियमानुसार सड़कों पर वाहन न चलाना दुर्घटना का कारण बन जाता है अत: दुर्घटनाओं से बचने के लिए उचित गति से नियमानुसार वाहन चलाएँ। वाहन चलाना सीखकर ही लाइसेंस बनवाएँ। अभ्यास सबसे बड़ा गुरु है अत: वाहन चलाने का धैर्यपूर्वक अभ्यास करना चाहिए। वाहन चलाते समय वाहन की गति को नियन्त्रित रखा जाना भी आवश्यक है, क्योंकि ऐसा करने से दुर्घटना की सम्भावना कम हो जाती है। वाहन को सजगतापूर्वक चलाना चाहिए क्योंकि दुर्घटना से देर ली। सड़क के नियम पालन में लापरवाही नहीं करनी चाहिए। स्वयं उचित ढंग से चलना चाहिए तथा अन्य वाहन चालकों से भी सतर्क रहना चाहिए. हो सकता है कि दूसरा वाहन चालक दक्ष न हो।




शुक्रवार, 14 मई 2021

essay on computer In hindi

Essay On Computer In Hindi

(कम्प्यूटर पर निबंध हिन्दी में )

Essay On Computer In Hindi For Class 5,Class 6,Class 7,Class 8,Class 9,Class 10,Class 11,Class 12,

निबंध-

1.परिचय, 2. कम्प्यूटर के उपयोग, 3. कम्प्यूटर एवं मानव, 4. उपसंहार

परिचय-

गत हजार वर्षों में विज्ञान ने मानव जीवन को पूर्णत: परिवर्तित कर दिया है। परन्तु इन हजार वर्षों में से जितना परिवर्तन पहले 900 वर्ष में नहीं हो पाया था जितना परिवर्तन केवल अन्तिम 100 वर्षों में हो गया। इसी प्रकार पूर्ण बीसवीं शताब्दी में जो विकास और परिवर्तन उपस्थित हुए हैं उनमें से अन्तिम दशक में हुए परिवर्तन ही अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। भिप्राय यह है कि विज्ञान के विकास की गति तीव्र से तीव्रतर होती जा रही है। पिछले सौ वर्ष में वैज्ञानिक अनुसंधानों और आविष्कारों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण योगदान कम्प्यूटर का ही है। पिछले कुछ वर्षों में तो इस यन्त्र का उपयोग जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इतना अधिक हो गया है कि किसी भी प्रयोगशाला, उद्योग, अनुसंधान केन्द्र यहाँ तक कि आधुनिक कार्यालय और विभाग के कम्प्यूटर-विहीन होने की कल्पना ही नहीं की जा सकती।

कम्प्यूटर के उपयोग-

वैसे तो कम्प्यूटर अब धीरे-धीरे हमारे जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रवेश करता जा रहा है। हम अपनी विभिन्न गतिविधियों के लिए कम्प्यूटर पर अधिक-से-अधिक आश्रित होते जा रहे हैं, फिर भी सुविधा के लिए इसके विभिन्न सार्बजनिक क्षेत्रों में उपयोग का विस्तार से अध्ययन कर लेना अच्छा रहेगा।


(1) गणना एवं सूचना-संग्रह (बैंकिंग आदि)-

अब तक बैंकों में खातों का हिसाब रखने का काम लिपिकों द्वारा खाता पृष्ठों पर किया जाता था परन्तु अब खाता पृष्ठों और किताबों के बनाने और सुरक्षित रखने की आवश्यकता नहीं है। अब इन्हें कम्प्यूटरों में भर कर सुरक्षित भी रखा जा सकता है और उनमें गणनाएँ भी तीव्रता से की जा सकती हैं। कम्प्यूटर की इस क्षमता का उपयोग कर बड़ी-बड़ी परीक्षा संस्थाओं (जैसे यू०पी० बोर्ड एवं विश्वविद्यालय आदि) परीक्षाफल थोड़े ही समय में तैयार किये जा सकते हैं। गणनाओं के संचय और उपयोग की क्षमता से ही अब चुनाव परिणामों को कम्प्यूटरीकृत मशीनों द्वारा अल्पकाल में ही प्राप्त किया जा सकता है।


(2) सूचना तकनीक के क्षेत्र में-

अब कम्प्यूटर द्वारा देश-विदेश की सूचनाओं को तीव्रगति से प्रेषित एवं संकलित किया जा सकता है। अन्तरिक्षयानों एवं उपग्रहों में स्थापित विभिन्न अनुसंधान संयन्त्रों द्वारा प्रेषित बड़ी-बड़ी सूचनाएँ एवं गणनाएँ अब क्षणों में एक स्थान से दूसरे स्थान को प्रेषित की जा रही हैं। पूर्व रेलवे आरक्षण वायुयान आरक्षण भी इसी कारण सम्भव हो सके हैं। इन्टरनेट ईकॉम ईमेल और फैक्स मशीनों में भी कम्प्यूटर का उपयोग होता है।


(3) मुद्रण एवं प्रकाशन-

कम्प्यूटर द्वारा संचालित फोटो कम्पोजिंग मशीन ने पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तक प्रकाशन के कार्य को
तीव्रगति एवं सुविधा प्रदान की है। पहले छापेखानों में एक-एक अक्षर का टाइप एकत्र कर जो कम्पोजिंग किया जाता था अब उसकी आवश्यकता नहीं रही है। अब तो चुम्बकीय डिस्क में सामग्री भर कर उसका क्षणों में कम्पोजिंग और मुद्रण हो जाता है। गणनाएँ और अक्षर ही नहीं, अब कम्प्यूटर द्वारा चित्रों आदि की छपाई भी सरल हो गयी है। यही कारण है कि पहले जिन पुस्तकों और पत्रिकाओं को प्रकाशित होने में बहुत-सा समय व्यय हो जाता था अब वह प्रकाशन अपेक्षाकृत अल्पकाल में ही सम्भव हो गया है।


(4) कला, संगीत एवं डिजाइनिंग के क्षेत्र में-कम्प्यूटर अब गणना और स्मृति के लिए ही नहीं, कला, संगीत और डिजाइनिंग के क्षेत्र में भी मनुष्य को सहयोग दे रहा है। कलाकार कम्प्यूटर की सहायता से अपने चित्र, डिजाइन और स्वरों तक का उचित समायोजन कर सकते हैं।


(5) वैज्ञानिक अनुसंधान एवं खोज-

कम्प्यूटरों की सहायता से विभिन्न प्रयोगशालाओं और वेधशालाओं में वैज्ञानिक अनुसंधान किये जा रहे हैं। अब गणनाओं और परिणामों को अपेक्षाकृत अधिक शुद्ध रूप से और तीव्रगति से प्राप्त किया जा सकता है। वैज्ञानिक उत्पादन एवं विभिन्न उद्योग-धन्धों में भी इसके उपयोग से हम लाभान्वित हो रहे हैं।


(6) युद्ध के क्षेत्र में-

पहले विद्युतीकृत कम्प्यूटर का प्रयोग अमेरिका ने अणुबम के विस्फोट सम्बन्धी गणनाओं के लिए किया था। अब अन्तरिक्ष अनुसन्धानों, मिसाइलों, राडा और सूक्ष्मातिसूक्ष्म यन्त्रों और उपकरणों का इस प्रकार कम्प्यूटरीकरण कर दिया है कि अब लगने लगा है कि भविष्य के युद्धों में कम्प्यूटरों की अहम भूमिका रहेगी।


कम्प्यूटर एवं मानव-

अब सरकारें, बड़ी-बड़ी व्यावसायिक एवं औद्योगिक संस्थाएँ और अनुसंधान केन्द्र ही नहीं प्रत्येक हर
सम्पन्न व्यक्ति कम्प्यूटर को अपने व्यक्तिगत सहायक के रूप में रखने का इच्छुक है। मानव की कम्प्यूटर पर बढ़ती आश्रितता को देखकर कभी-कभी मनुष्य अपने द्वारा बनाये गये इस यन्त्र को मनुष्य से अधिक उपयोगी और महत्त्वपूर्ण समझने लगता है, परन्तु
यह भूल जाता है कि मानव द्वारा निर्मित इस उपकरण में मनुष्य की अपेक्षा अनेक दोष हैं। इसमें अनुभूति और उस पर आधारित अद्भावों का अभाव है। यह बिना संचालक के अपंग है तथा इसमें अन्त:प्रेरणा एवं स्वयं निर्णय का मानवोचित गुण भी नहीं है।


उपसंहार-

हमारे देश में कम्प्यूटर क्रान्ति लाने का श्रेय हमारे पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी को है। समान्य जानकारियों के अतिरिक्त भविष्य में कम्प्यूटर विवाह हेतु जोड़े तैयार करेगा फिर भी हर वैज्ञानिक अनुसंधान की भाँति कम्प्यूटर के अनुचित प्रयोग का खतरा वर्तमान है और क्योंकि कम्प्यूटर का क्षेत्र और कार्यक्षमता अधिक है, अंत: इसके खतरे भी असीम हैं। गणना अथवा उपयोग की जरा सी ही त्रुटि सम्पूर्ण मानवता का विनाश करने में सक्षम है। भारत जैसे जनबहुल देश में तो इससे बेरोजगारी बढ़ने का खतरा भी भयंकर ही है अनेक दोष होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्रों में इसके महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता, समाज में कम्प्यूटर ने अपनी महत्ता एवं उपयोगिता अल्पसमय में ही स्थायी रूप से स्थापित कर ली है।


Environmental pollution essay in hindi

Environmental pollution essay in hindi

पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध 


Paryavaran pradushan ki samasya aur samadhan par nibandh 

पर्यावरण प्रदूषण की समस्या और समाधान पर निबंध 

रूपरेखा-

1. प्रस्तावना, 2. प्रदूषण के विभिन्न प्रकार-(i) वायु प्रदूषण, (ii) जल प्रदूषण, (iii) रेडियोधर्मी प्रदूषण, (iv) ध्वनि प्रदूषण, (v) रासायनिक प्रदूषण, 3. उपसंहार-प्रदूषण पर नियन्त्रण।

प्रस्तावना-

प्रदूषण (Polltion) वायु, जल एवं स्थल की भौतिक एवं रासायनिक विशेषताओं का वह अवांछनीय परिबर्तन है जो मनुष्य और उसके लिए लाभदायक जन्तुओं, पौधों, औद्योगिक संस्थाओं तथा दूसरे कच्चे माल इत्यादि को किसी भी रूप में हानि पहुँचाता है। वातावरण में कुछ हानिकारक घटकों का प्रवेश हो जाने से वातावरण दूषित हो जाता है, इसी को हम पर्यावरण प्रदूषण की संज्ञा देते हैं 

 पर्यावरण प्रदूषण के विभिन्न प्रकार-

विकासशील देशों में औद्योगिक एवं रासायनिक कचरे के बढ़ने के कारण जल ही नहीं वायु और पृथ्वी भी प्रदूषण Pollution से ग्रस्त हो रही है। मुख्य प्रदूषण निम्नलिखित हैं-


(1) वायु प्रदूषण-
वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें एक विशेष अनुपात में उपस्थित रहती हैं। साँस द्वारा हम शुद्ध वायु (ऑक्सीजन) ग्रहण करते हैं तथा अशुद्ध वायु (कार्बन डाइऑक्साइड) छोड़ते रहते हैं। हरे पौधे प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण कर शुद्ध वायु को निष्कासित करते रहते हैं। इससे वातावरण में ऑक्सीजन और कार्बन डाइआक्साइड का सन्तुलन बना रहता है। इस सन्तुलन को बनाये रखने के लिए वनों की हमारे जीवन में महती उपयोगिता है।
मनुष्य अपनी आवश्यकता-पूर्ति के लिए वनों को काटता है, परिणामस्वरूप पर्यावरण में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती जा रही है। इनके प्रभाव से पत्तियों के किनारे और नसों के मध्य का भाग सूख जाता है। वायु प्रदूषण (Pollution) से मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे श्वसन सम्बन्धी बहुत से रोग पैदा हो जाते हैं। फेफड़ों का कैंसर, अस्थमा तथा फेफड़ों से सम्बन्धित रोग फैलते हैं।

(2) Water pollution - जल प्रदूषण 
जल में अनेक प्रकार के खनिज तत्त्व, कार्बनिक-अकार्बनिक पदार्थ तथा गैसें घुली रहती हैं। यदि जल में ये पदार्थ आवश्यकता से अधिक मात्रा में इकट्ठे हो जाते हैं तो जल प्रदूषित हो जाता है और पीने वालों के लिए अनेक प्रकार के रोगों का कारण बन जाता है।

(3) Radioactive pollution रेडियोधर्मी प्रदूषण
परमाणु शक्ति उत्पादन केन्द्रों तथा परमाणु-परीक्षण से जल, वायु तथा पृथ्वी सबमें प्रदूषण होता है। विस्फोट के स्थान पर तापक्रम इतना बढ़ जाता है कि धातु तक पिघल जाती है। इससे रेडियोधर्मी पदार्थ वायुमण्डल में प्रवेश कर जाते हैं। ये ठोस रूप धारण कर बहुत छोटे-छोटे धूल कणों के रूप में वायु के झोंकों के साथ समस्त संसार में फैल जाते हैं।

(4) Noise pollution ध्वनि प्रदूषण-
नगरों में रेलगाड़ियों, बसों आदि वाहनों, कल-कारखानों तथा लाउडस्पीकरों आदि की तेज आवाज से ध्वनि प्रदूषण होता है। ध्वनि की लहरें जीवधारियों को प्रभावित करती हैं। इससे सुनने की शक्ति नष्ट हो जाती है, नींद न आना तथा नाड़ी- संस्थान सम्बन्धी रोग और कभी-कभी पागलपन भी हो जाता है।

(5)Chemical Pollution रासायनिक प्रदूषण-
कृषक अपनी फसलों में कीटनाशक औषधियों का प्रयोग करते हैं। आजकल तो गेहूँ जैसे खाद्यान्नों
में भी इस प्रकार की दवाइयों को रखा जाने लगा है। इन दवाइयों के अंधा-धुंध प्रयोग से मानव तथा पक्षियों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रदूषण पर नियन्त्रण-

औद्योगीकरण तथा जनसंख्या की वृद्धि ने संसार के सामने प्रदूषण की गम्भीर समस्या उत्पन्न कर दी है। इस समय हमारे देश में इस समस्या से निबटने के लिए सरकार द्वारा अनेक प्रयास किये जा रहे हैं। जल प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण के लिए भारत सरकार ने 1974 ई० में जल प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण अधिनियम लागू किया था।

इस दिशा में गंगा परियोजना के अन्तर्गत गंगा के प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया जा रहा है।
उद्योगजन्य प्रदूषण को रोकने हेतु अब सरकार की नीति है कि किसी नये उद्योग को तभी लाइसेन्स दिया जायेगा जबकि वहाँ औद्योगिक कचरे के निस्तारण हेतु समुचित व्यवस्था कर ली गयी हो। इसके अतिरिक्त वनों की अनियन्त्रित कटाई को रोकने के लिए कठोर नियम बनाये गये हैं। लोगों को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
इस प्रकार हमारी सरकार पर्यावरण प्रदूषण Environmental Pollution की रोकथाम के लिए दृढ़ता से तत्पर है।

essay on sports in hindi

Essay On My Favorite Game In Hindi, essay on sports in hindi,(खेल पर निबंध )

Mera Priya Khel Par Nibandh

(मेरा प्रिय खेल पर निबंध )


निबंध 

रूपरेखा-

1. प्रस्तावना. 2. आवश्यकता, 3. खेलों से लाभ, 4. शिक्षा और खेल, 3. उपसंहार ।

प्रस्तावना-

आज का युग खेलों का युग है। अखबार, रेडियो तथा सिनेमा आदि हर जगह खेलों को स्थान दिया जाता है।जीवन की सफलता के लिए शरीर और मन का स्वस्थ होना आवश्यक है। शिक्षा से यदि मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है,

खेलों से शारीरिक स्वास्थ्य। शरीर की अस्वस्थता में मन का स्वस्थ रहना असम्भव है। इस दृष्टि से शिक्षा में खेलों को विशेष महत्त्व प्रदान किया गया है। खेल विद्यार्थी का जीवन है। इसके अभाव में विद्यार्थी निष्क्रिय, आलसी एवं निराश हो जाता है। शिक्षा में खेलों का कितना महत्त्व है, इस विषय पर कुछ विचार कर लेना आवश्यक है।

जीवन में खेलों का आवश्यकता-

शिक्षा के क्षेत्र में खेलों की बहुत आवश्यकता है। विद्यार्थी का काम रात-दिन केवल किताबें रटकर पास होना ही नहीं है अपितु शरीर को स्वस्थ रखना भी उतना ही आवश्यक है जितना कि पढ़ना। जो विद्यार्थी अध्ययन के साथ खेलों में भाग नहीं लेते हैं, वे कागजी पहलवान रह जाते हैं। उनकी दशा देखकर बड़ी दया आती है। यदि वे अपना कुछ समय खेल में भी लगाते तो उनकी यह दयनीय दशा कभी न होती। पढ़ते-पढ़ते थक जाने पर मस्तिष्क को फिर से ताजा बनाने के लिए खेल कूद आवश्यक हैं।

प्राय: खेल में भाग लेने वाले विद्यार्थी पढ़ने निपुण होते हैं। वास्तव में खेल के महत्त्व को खिलाड़ी ही समझ सकते हैं। जब खिलाड़ी खेल के मैदान में आता है, उस समय वह संसार के झंझटों से मुक्त हो जाता है। उसका लक्ष्य खेलना होता है-बस खेलना और कुछ नहीं। खिलाड़ियों के सुन्दर शारीरिक गठन को देखकर खेलों के महत्व को समझा जा सकता है। खेलों के महत्त्व को दृष्टि में रखकर ही स्कूलों व कालिजों में अध्ययन के साथ-साथ खेलों को विशेष स्थान दिया गया है।

परन्तु खेल केवल खेल की भावना से खेलने चाहिए। हार और जीत का खेल में कोई महत्त्व नहीं होता। खेल को जीतने से खिलाड़ी को शिक्षा मिलती है कि जीवन में सफलता पर घमंड नहीं करना चाहिए। खेल की हार खिलाड़ी को असफलता में हिम्मत न हारने की प्रेरणा देती है।

खेलों से लाभ-

खेलों से हमें बहुत-से लाभ होते हैं। खेलने वाले छात्र को आलस्य नहीं घेर पाता। खेलों से बुद्धि विकसित होती है और शरीर सुन्दर एवं सुगठित हो जाता है। अनुशासन की भावना पैदा होती है। सहपाठियों में प्रेम का संचार होता है। कार्य को शीघ्रता से करने की आदत पड़ जाती है। ईमानदारी व न्याय से कार्य करने की शिक्षा मिलती है। शरीर स्वस्थ होने से विद्याध्ययन में खूब मन लगता है। महात्मा गांधी कहा करते थे--"स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क वास करता है।' इनके अतिरिक्त खेलों से और भी लाभ होते हैं, यथा घमण्ड न करना, हारने पर भी हिम्मत न हारना आदि।

शिक्षा और खेल-

शिक्षा में खेलों का विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन दोनों का साथ-साथ चलना अधिक लाभदायक है।केवल शिक्षा ग्रहण करने वाला मनुष्य डरपोक, दुर्बल, आलसी तथा कायर बन जाता है। इस प्रकार केवल खेलों में भाग लेने वाला व्यक्ति भी अपने जीवन में सफल नहीं हो पाता। यदि शिक्षा और खेल दोनों का उचित मेल कर दिया जाये तो सोने में सुगन्ध हो जायेगी। आजकल ऐसी शिक्षा पद्धति का आविष्कार हो रहा है जिसमें खेल के माध्यम से शिक्षा दी जाती है।

क्योंकि बचपन में बालक पढ़ाई की अपेक्षा खेल को अधिक पसन्द करते हैं। बच्चा निष्क्रिय होकर नहीं बैठ सकता। उसे ऐसा काम मिलना चाहिए जिससे वह सक्रिय रह सके। इसके लिए शिक्षा में खेल पद्धति को अपनाया गया है। कहने का तात्पर्य यह है कि शिक्षा और खेल में परस्पर गहरा सम्बन्ध है।

उपसंहार-

मनुष्य अपने जीवन काल में सदा कुछ न कुछ सीखता ही रहता है। विद्यार्थी जितना खेल के मैदान में जाकर सीखते हैं, शायद उतना स्कूल की कक्षाओं में न सीखते हों। स्कूल का वातावरण बन्धन और भय का होता है, जबकि खेल के मैदान का वातावरण प्रेम और स्वतन्त्रता का होता है। वहाँ बच्चे पर किसी का दबाव नहीं होता। खेल के मैदान में वह जो कुछ ग्रहण करता है. वह चिरस्थायी होता है। स्पष्ट है कि शिक्षा में खेलों को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त होना चाहिए,

जिससे विद्यार्थी का चहुँमुखी विकास हो सके। हमें उत्कृष्ट खेल भावना से खेलों में भाग लेना चाहिए। स्वस्थ रहते हुए सौ वर्ष जीने की इच्छा पूर्ण करनी चाहिए।


बुधवार, 12 मई 2021

Essay On Diwali In Hindi, Diwali Par Nibandh

दीपावली पर निबंध

(Essay On Diwali In Hindi, Diwali Nibandh In Hindi 100-200-300-500 Words)

निबंध 

रूपरेखा-

1. प्रस्तावना, 2. मनाने का समय, 3. मनाने के कारण, 4. मनाने का ढंग, 5. लाभ, 6. दुष्प्रवृत्तियाँ, 7. उपसंहार

प्रस्तावना-भारतवर्ष में अनेक त्योहार मनाये जाते हैं। इनमें से कुछ धार्मिक हैं, कुछ सांस्कृतिक, कुछ सामाजिक और राष्ट्रीय त्योहार हैं। इनमें से दीपावली एक बहुत बड़ा धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक पर्व है।


 शब्द का अर्थ होत है-दीपकों की पंक्ति। दीपकों की पंक्ति जलाकर यह त्यौहार मनाया जाता है। इसीलिए इसका नाम दीपावली है।

इसी "दीपमालिका अथवा 'दीवाली' भी कहा जाता है।मनाने का समय-शरद ऋतु के सुहावने समय में यह महान पर्व प्रति वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। सभी के मन में एक विशेष उल्लास रहता है।

मनाने के कारण- दीपावली के मनाये जाने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

1. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचन्द्र दुष्ट रावण का वध करके कार्तिक महीने की अमावस्या को लक्ष्मण और सीता के साथ अयोध्या लौटे थे। उनके आगमन की खुशी में उनके स्वागतार्थ दीपकों की सजावट की गयी। तभी से यह पर्व इस रूप प्रति वर्ष मनाया जा रहा है।

2. जैन धर्म के प्रचारक भगवान महावीर ने आज ही के दिन सांसारिक बन्धनों का त्याग करके मुक्ति प्राप्त की थी। उसी समय जनता ने दीपमालाएँ जलाकर उनके निर्वाण पद पाने की खुशी मनायी थी।

3. पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन लक्ष्मी का अवतार हुआ था; अत: इस दिन विशेष रूप से लक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है।

4. आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इसी पुण्य दिवस को मोक्ष प्राप्त किया था। अत: आर्यसमाजी उनकी याद में उत्साह से इस पर्व को मनाते हैं।

5. सिक्खों के छठे गुरु हरगोविन्द सिंह ने इसी दिन कारावास से मुक्ति प्राप्त की थी।

इस प्रकार अनेक कड़ियाँ इस पर्व से जुड़ती जा रही हैं जिससे इस पर्व का महत्त्व और बढ़ता ही जा रहा है।

मनाने का ढंग- मुख्य पर्व आने से दस-पन्द्रह दिन पहले से ही इसकी तैयारियाँ आरम्भ होने लगती हैं। सफेदी, रोगन आदि के द्वारा घरों को स्वच्छ कर दिया जाता है। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को छोटी दीवाली मनायी जाती है, इसे नरक-चतुर्दशी भी कहते हैं। इसी दिन भगवान कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध किया था। छोटी दीवाली से पहले दिन धन्वन्तरि त्रयोदशी मनायी जाती है। इस त्यौहार को वैद्य लोग अधिक उत्साह से मनाते हैं। आयुर्वेद के प्रवर्तक भगवान धन्वन्तरि का अवतार इसी दिन हुआ था।

अमावस्या को दीवाली का मुख्य पर्व होता है। फोटो, कैलेण्डर, झाड़-फानूस आदि से घर सजाये जाते हैं। हलवाइयों की दुकानें रंग-बिरंगी मिठाइयों से सजायी जाती हैं। बाजारों में स्थान-स्थान पर खील, बताशों, मिट्टी के खिलौनों, मोमबत्तियों और पटाखों के ढेर लगे हुए होते हैं।

सन्ध्या आते ही दीपकों, मोमबत्तियों तथा बिजली के बल्बों से सारा शहर जगमगा उठता है। गणेश तथा लक्ष्मी जी का पूजन प्रारम्भ हो जाता है। सम्बन्धियों और मित्रों के यहाँ मिठाइयाँ भेजी जाती हैं। घरों में पूड़ी-पकवान तथा अनेक प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाये जाते हैं।

लाभ- इस पर्व को मनाने से कई लाभ होते हैं। वर्षा ऋतु में रोग के कीटाणु उत्पन्न हो जाते हैं। मकानों की सफाई, होने तथा सरसों के तेल धुएँ से रोग के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इस त्यौहार से दुकानदारों को विशेष लाभ होता है। बच्चों का खूब मनोरंजन होता है।

दुष्प्रवृत्तियाँ- इस पवित्र पर्व में कुछ दुष्प्रवृत्तियाँ भी आ गयी हैं। इस दिन कुछ लोग जुआ खेलते हैं, ऐसे लोगों के लिए दीवाली पर्व न होकर दीवाला बन जाती है। कुछ लोग शराब पीकर इस पर्व को गन्दा करते हैं।

उपसंहार- सारे भारत में यह त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। दीवाली से अगले दिन गोवर्धन पूजा और उससे भी अगले दिन भैया दूज को भाई-बहिन का मिलन त्यौहार होता है। इस प्रकार चार-पाँच दिन तक हर्ष एवं उल्लास का वातावरण बना रहता है। वास्तव में यह त्यौहार हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है।


गुरुवार, 25 मार्च 2021

Essay On Science In Hindi

निबंध 

विज्ञान के चमत्कार पर निबंध

( Essay On Science In Hindi )
रूपरेखा-

1. प्रस्तावना, 2. विज्ञान की देन, 3. हानियाँ, 4. उपसंहार

प्रस्तावना-

मनुष्य एक बुद्धिजीवी प्राणी है। अपनी बुद्धि के बल से ही वह असाध्य को साध्य और असम्भव को सम्भव बना लेता है। आज का युग बौद्धिक और वैज्ञानिक है। दिन-प्रतिदिन नये-नये आविष्कार हो रहे हैं। मनुष्य ने अपने बुद्धिबल से प्रकृति पर विजय प्राप्त कर ली है। जिन चीजों की हम कुछ समय पूर्व कल्पना भी नहीं कर पाते थे उन्हीं चीजों को आज हम अपने सामने देख रहे हैं। विज्ञान के नवीन आश्चर्यजनक चमत्कारों को देखकर दार्शनिकों की बुद्धि चकित हो जाती है। विज्ञान के चमत्कारों की कल्पना मनुष्य स्वप्न में भी नहीं कर सकता था।

विज्ञान की देन-

विज्ञान प्रद नवीन शक्ति और साधन निम्नलिखित हैं

(i) विद्युत-शक्ति-

विज्ञान के सभी आविष्कारों का मूल रूप बिजली है। एक बटन दबाने मात्र से कमरा प्रकाश से जगमगा उठता है, गर्मी-सर्दी से बचने के लिए पंखे तथा हीटर का उपयोग कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। रेडियो, टेलीफोन, सिनेमा, टेलीविजन आदि सभी आविष्कारों में विद्युत-शक्ति ही काम करती है। बड़े-बड़े मिलों, कारखानों और गाड़ियों का संचालन बिजली से होता है। बिजली हमारे लिए देवी वरदान सिद्ध हो रही है।

(ii) समाचार तथा मनोरंजन के साधन-

बेतार का तार बहुत आश्चर्यजनक आविष्कार है। बिना तार की सहायता से हम हजारों मील दूर बैठे अपने मित्रों से बात कर सकते हैं। घर बैठे हुए ही हजारों मील दूर देशों के समाचार रेडियो द्वारा सुन सकते हैं। टेलीविजन पर हम बोलने वाले या नाटक आदि करने वालों के चित्र भी देख सकते हैं। एक मिनट में समाचार को सारे संसार में प्रकाशित किया जा सकता है।

जेब में रेडियो डाल लीजिए तथा कहीं भी काम करते हुए उसे सुनते रहिए। टेलीफोन एक अद्भुत वस्तु बन गया है। टेलीफोन का डायल घुमाइये और तत्काल दूर देश में बैठे अपने सम्बन्धी अथवा मित्र से बात कर लीजिए।

(iii) परमाणु शक्ति-

अपार शक्ति से भरपूर अणुबम व उद्जन बम विज्ञान की ही देन है। परमाणु बम इतना शक्तिशाली होता है कि यदि उसका एक चने के बराबर भाग मोटर में लगा दिया जाये तो मोटर सैकड़ों वर्षों तक चलती रहेगी। एक छोटेसे परमाणु बम ने जापान के नागासाकी तथा हिरोशिमा जैसे विशाल नगरों की जरा-सी देर में नष्ट कर दिया था। अब ऐसे प्रक्षेपास्त्रों का आविष्कार हो चुका है जिनसे अपने स्थान पर बैठे हुए ही हजारों मील दूर प्रहार किया जा सकता है। परमाणु शक्ति का प्रयोग यदि मानव कल्याण के लिए किया जाये तो वह अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो सकती है।

(iv) अन्य आविष्कार-

तीव्रगामी राकेटों द्वारा चन्द्रमा पर मानव के चरण पहुँच चुके हैं। स्त्री को पुरुष तथा पुरुष को स्त्री बनाना अब सम्भव हो गया है। मनुष्य के कृत्रिम मस्तिष्क का निर्माण होने जा रहा है। ये सब विज्ञान के ऐसे आश्चर्यजनक चमत्कार हैं जिनकी हम पहले कल्पना भी नहीं कर सकते थे। विज्ञान ने मनुष्य को स्वर्गीय सुख, अपार धन तथा दुर्लभ साधन दिये हैं। निःसन्देह विज्ञान मनुष्य के लिए महान वरदान है। यहाँ तक कि कृषि क्षेत्र भी विज्ञान के प्रवेश ने अपूर्व सफलता प्राप्त की है। हमारे किसान कृषियन्त्रों एवं उन्नतशील खाद तथा कीटनाशकों से लाभान्वित हुए हैं। जैविक कृषि हमारे लिए विज्ञान की ही देन है।

हानियाँ-

विज्ञान ने मनुष्य के अकर्मण्य बना दिया है। वह आलसी एवं विलासी हो गया है। विश्व में भय, शंका एवं युद्ध का वातावरण बना हुआ है। विज्ञान की देन जो मानव जाति के लिए वरदान बन सकती थी, अभिशाप बनी हुई है। आज ऐसेऐसे बम बन चुके हैं यदि उनका विस्फोट कर दिया जाये तो समस्त विश्व नष्ट हो सकता है।

उपसंहार-

विज्ञान का यह रूप मानव जाति के लिए अभिशाप बन गया है। अस्त्र-शस्त्रों से कभी शान्ति स्थापित नहीं हो सकती है। विज्ञान मानव के लिए हानिकारक है या लाभदायक, यह आज एक विचारणीय विषय बना हुआ है। अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि शेक्सपियर ने कहा है-“न कोई वस्तु अच्छी है न बुरी, मनुष्य अपने विचारों के अनुसार उसे अच्छी या दुरी बना लेताहै।"  ठीक यही बात विज्ञान के विषय में भी कही जा सकती है।


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