मंगलवार, 25 मई 2021

Berojgari par nibandh

Berojgari par nibandh in hindi

बेरोजगारी पर निबंध

Essay on Unemployment in hindi

बेरोजगारी की समस्या पर निबंध


रूपरेखा-

1. प्रस्तावना, 2, बेरोजगारी का अर्थ एवं प्रकार, 3. बेरोजगारी के कारण, 4. बेरोजगारी दूर करने के उपाय, 5. उपसंहार।


प्रस्तावना-

स्वतन्त्रता-प्राप्ति के सत्तर वर्ष पश्चात भी हम अनेक राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का पूर्ण समाधान नहीं खोज पाये हैं। इस प्रकार की समस्याओं में बेरोजगारी एक ऐसी समस्या है जो दिन-प्रतिदिन उग्र से उग्रतर होती जा रही है। सरकार, परिवार और व्यक्ति सभी स्तरों पर इस समस्या की जटिलता को अनुभव तो किया जा रहा है परन्तु भरसक प्रयास करने पर भी यह समस्या सुलझ नहीं पा रही है।

बेरोजगारी का अर्थ एवं प्रकार-

बेरोजगारी (Unemployment) का अर्थ है-इच्छा एवं योग्यता होते हुए भी व्यक्ति को उचित रोजगार का न मिलना। आज हमारे समाज में हजारों-लाखों ऐसे नवयुवक हैं जो ऊँची से ऊँची शिक्षा और योग्यता प्राप्त करने के बाद भी नौकरी की तलाश में मारे-मारे फिरते हैं अथवा अपनी योग्यता के अनुसार नौकरी और वेतन न पाकर किसी छोटी-मोटी नौकरी और नाममात्र का वेतन पाकर जैसे-तैसे दिन काट रहे हैं।

बेरोजगारी को हम पढ़े-लिखों और अनपढ़ लोगों की बेरोजगारी ( Berojgari ) के रूप में भी विभाजित कर सकते हैं और इसे पूर्ण बेरोजगारी तथा आंशिक बेरोजगारी के रूप में भी विभाजित कर सकते हैं।

आंशिक बेरोजगारी में व्यक्ति सं तो पूर्णकालिक स्थायी नौकरी पाता है और न अपनी योग्यता और सामर्थ्य के अनुसार वेतन पाता है। आंशिक रोजगार युवकों की विवशता बन गयी है अत: इसे भी एक तरह से पूर्ण बेरोजगारी ही समझना चाहिए।

बेरोजगारी के कारण-

अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों और राजनीतिज्ञों ने इस समस्या पर विचार करते हुए इसके कारणों पर भी गम्भीरता से विचार किया है। इन कारणों में से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं


  • जनसंख्या में अनियन्त्रित वृद्धि - प्रतिवर्ष बढ़ने वाली जनसंख्या के अनुपात में बेरोजगार युवक-युवतियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि प्रयास किये जाने पर भी बेरोजगारी की समस्या हमारे सम्मुख सुरसा के मुख की भाँति बढ़ती ही जा रही है।

  • यन्त्रीकरण एवं औद्योगीकरण- स्वचालित मशीनों और कम्प्यूटर के समावेश से बेरोजगार युवक-युवतियों की एक बड़ी फौज पैदा हो गयी है। समस्या के इस पक्ष को समझ कर ही हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने चरखे को प्रतीक बना कर लघु और अतिलघु उद्योग-धन्धों को अपनाने की प्रेरणा दी थी। परन्तु हम राष्ट्रपिता की जय-जयकार करके ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझने लगे और उनकी शिक्षाओं को उठाकर हमने ताक पर रख दिया।

  • दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति - अंग्रेजों द्वारा संचालित शिक्षा पद्धति थोड़े-बहुत संशोधन और परिवर्धन के साथ आज भी प्रचलित है। इसने व्यक्ति को शिक्षित बना कर साहब (काम को अपमान समझने वाला) बना दिया। शिक्षा भी ऐसी दी गयी जिसके द्वारा धनोपार्जन की कोई पद्धति नहीं सिखाई गयी।

बेरोजगारी दूर करने के उपाय -

इम समस्या के समाधान का एकमात्र उपाय यह है कि इसको जन्म देने और बढ़ाने वाली स्थितियों को बदल दिया जाये। बेरोजगारी दूर करने के लिए निम्नलिखित प्रयास किये जा सकते हैं

  • जनसंख्या नियन्त्रण - हमारे देश में अनेक सामाजिक और आर्थिक समस्याओं के समान बेरोजगारी की समस्या का समाधान भी जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए परिवार कल्याण कार्यक्रमों को लागू करके सम्भव हो सकता है।

  • कृषि आधारित उद्योग - धन्धों का विकास-भारत एक कृषि-प्रधान देश है। यहाँ की अधिकांश जनता ग्रामों में रहकर कृषि को ही व्यवसाय बना कर उस पर आश्रित रहती है। अत: बेरोजगारी की समस्या का समाधान कृषि के विकास और उस पर आधारित कुटीर उद्योग और लघु उद्योगों के विकास से भी सम्भव हो सकता है।

  • आधारभूत सुविधाओं का विकास - आधारभूत सुविधाओं, जैसे-सड़कों, सिंचाई के लिए नहरों और रहने के लिए मकानों आदि की पर्याप्त सुविधा के विकास से नवयुवकों को रोजगार के नये अवसर प्राप्त होंगे और देश का आर्थिक विकास सम्भव होगा।

  • शिक्षा पद्धति - वर्तमान शिक्षा को रोजगारोन्मुख बनाने की आवश्यकता है। अब वह समय आ गया है जब युवक-युवतियों को व्यवसाय सम्बन्धी शिक्षा देकर उन्हें अपनी आजीविका कमाने योग्य बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए।

उपसंहार-

बेरोजगारी देखने में तो केवल एक आर्थिक समस्या नजर आती है परन्तु इसका सम्बन्ध समाज की शान्ति-व्यवस्था और युवकों के मनोविज्ञान से भी है। रोजगार के अभाव में नवयुवकों में लूट-खसोट आदि अपराधों की वृत्ति बढ़ती जा रही है और दूसरी ओर उनमें निराशा और आक्रोश पनप रहा है; अत: आवश्यक है कि सभी मिलकर इस समस्या के समाधान के लिए शीघ्रातिशीघ्र भरसक प्रयत्न करें




सोमवार, 24 मई 2021

Desh prem par nibandh

देश-प्रेम पर निबंध

Desh prem par nibandh


रूपरेखा-

1. देश-प्रेम की महता, 2. देश-प्रेम की स्वाभाविकता, 3. देश के प्रति हमारा कर्तव्य, 4. उपसंहार।

देश-प्रेम की महत्ता-

देश-प्रेम (Desh Prem) की भावना मनुष्य जीवन के लिए अनिवार्य एवं महत्त्वपूर्ण है। जिस प्रकार मनुष्य अपने प्रेम और त्याग से अपने आपको, अपने परिवार को पोषित करता है, उसी प्रकार प्रेम और बलिदान के द्वारा वह अपने देश की रक्षा करता है। ऐसे ही बलिदानी पुरुषों के बल पर कोई भी राष्ट्र फलता-फूलता है। राणा प्रताप और महात्मा गांधी आदि ऐसे ही देशभक्त हैं। जिम मातृभूमि के अन्न, जल, वस्त्रों से हमारा पालन-पोषण हुआ, जिसकी पावन रज में खेल-कूद कर इतने बड़े हुए. जिन भी के निवामियों के मुम्ब और दुख में हमारा गहरा सम्बन्ध है, उस स्वर्गादपि गरीयमी जन्मभूमि के दर्शन-मात्र से आनन्दमय ही जाना एक स्वाभाविक सी बात है। देश-प्रेम (Desh Prem) की भावना से ओत-प्रोत कविवर मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियाँ देखने योग्य है

जिसकी रज में लोट-लोट कर बड़े हुए है

घुटनों के बल सरक-सरक कर खड़े हुए है

परमहंस सम बाल्यकाल में सब सुख पाये

जिसके कारण धूलि भरे हीरे कहलाये 

हम खेले कूद हर्ष युत, जिसकी प्यारी गोद में।

हे मातभूमि! तमको निरख मग्न क्यों न हो मोद में।

वास्तव में जिम मानव के हृदय में स्वदेश का प्यार नहीं. वह हृदय नहीं पाषाण है

'भरा नहीं जो भावों से, बहती जिसमें रमधार नहीं।

वह हृदय नहीं है, पत्थर है. जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ।”

देश-प्रेम (Desh Prem) की स्वाभाविकता-

मातृभूमि के प्रति मनुष्य के हृदय में प्रेम (Prem) होना एक स्वाभाविक बात है। जिस प्रकार स्नेहमयी माता के प्रति स्वाभाविक अनुराग होता है उसी प्रकार आनन्ददायिनी मातृभूमि के प्रति मानव-हृदय में प्रेम की निर्मल गंगा स्वनः प्रवाहित होती है। देश-प्रेम की इस पवित्र गंगा में नहाकर मानव का शरीर ही नहीं, उसकी आत्मा भी पवित्र हो जाती है।

जिम मातृभूमि ने हमें जन्म दिया, हमारा पालन-पोषण किया, उम माता तुल्य मातृभूमि के प्रति जिसके हृदय में प्रेम की सरिता नीरस हो जाये, वह मनुष्य नहीं, उस पशु के समान है जिसमें दया, प्रेम आदि कोमल भावनाओं का विकास नहीं होता। गुप्त जी ने ठीक ही कहा है

जिसको न निज भाषा तथा निज देश का अभिमान है।वह नर नहीं, नर पशु निरा है, और मृतक समान है।"

विश्व के सभी देशों में सदैव से देशभक्त होते आये हैं और होते रहेंगे। इस पवित्र भावना से प्रेरित हो स्वतन्त्रता संग्राम में लाखों भारतीयों ने हंसते-हसते अपने प्राणों का बलिदान चढ़ा दिया। इसी पवित्र भावना के जाग्रत होने पर विगत महायुद्ध में एक

जापानी देशभक्त ने अपने प्राणों का बलिदान चढ़ाया और शत्रु के 'प्रिंस आफ वेल्म नामक जलीय जंगी जहाज का विध्वंस कर दिया था। देश-प्रेम की भावना के कारण ही इंग्लैण्ड के निवासियों ने देश-हित के लिए अपना सब कुछ अर्पण कर दिया था।

देश प्रेम के प्रति हमारा कर्तव्य-

जिस देश की भूमि ने हमें जन्म दिया, जिसके अमृत सम अन्न एवं जल ग्रहण कर हम बड़े हुए, जिसकी गोदी में खेलकर हम हृष्ट-पुष्ट हुए उस प्राणप्रिय देश के उपकारों का बदला कभी चुकाया नहीं जा सकता, अत: हमारा कर्तव्य है कि हम अपने देश के लिए बड़े से बड़ा बलिदान करने को तैयार रहें। अपने देश की एक-एक इंच भूमि के लिए अपने देश के सम्मान और गौरव की रक्षा के लिए प्राणों की बाजी लगा देना प्रत्येक देशवासी का पुनीत कर्तव्य होता है।

जिस धरती की छाती का रस पीकर हम जीवन धारण करते हैं. संकट में उसकी रक्षा के लिए जो अपना सर्वस्व देकर भी उसकी आन न बचाये, उसमे कृतघ्न कोई हो नहीं सकता। कवि का यह कथन कितना उपयुक्त है

पैदा कर जिस देश जाति ने तुमको पाला-पोसा.

किये हुए है वह निज-हित का तुमसे बड़ा भरोसा।

उससे होना उऋण प्रथम है सत्य कर्तव्य तुम्हारा,

फिर दे सकते हो वसुधा को शेष स्वजीवन सारा।"

भगवान राम को अपनी मातृभूमि के सामने बैकृष्ट का सुख भी तुच्छ दिखाई पड़ता था

यद्यपि सब बैकृष्ट, बखाना, वेद पुरान विदित जग जाना।

अवध सरिस प्रिय मोहि नहि सोऊ, यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ॥"

देश-प्रेम की यह भावना भारतीय संस्कृति का प्राण है।

उपसंहार-

वास्तव में देश-प्रेम (Desh Prem) वह पवित्र भावना है जो मानव में आत्म-गौरव और आत्म-विश्वास को जगाती है। यही वह भावना है जिसके कारण कोई देश उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच जाता है और जिसके अभाव में पतन के गर्त में गिर जाता है। जिस मनुष्य में आत्माभिमान तथा अपने देश के प्रति सम्मान की भावना नहीं है. उसे मनुष्य कहलाने का अधिकार ही नहीं है 


शनिवार, 22 मई 2021

essay on tree in hindi

पेड़ पर निबंध हिंदी में

Essay On Tree In Hindi

पेड़ो का महत्त्व पर निबंध 

रूपरेखा-

1. प्रस्तावना, 2. पेड़ो की उपयोगिता, 3. वर्षा की प्राप्ति, 4. लकड़ी की प्राप्ति, 5. अमूल्य औषधियाँ, 6. अन्य लाभ 7. आध्यात्मिक लाभ, 8. उपसंहार।

प्रस्तावना-

मानव को अपनी शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भौतिक साधनों की आवश्यकता पड़ती है। मनुष्य अपनी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति प्राकृतिक साधनों की सहायता से परिश्रम करके करता है। प्रकृति का चक्र कुछ ऐसा है।

कि जिन वस्तुओं की आवश्यकता जीवन के लिए अनिवार्य है, प्रकृति उन्हें स्वयं ही उपलब्ध करा देती है।

इन साधनों को, जो मानव के भौतिक पक्ष की आवश्यकता की पूर्ति करते हैं, हम प्राकृतिक स्रोत कहते हैं।

पेड़ की उपयोगिता-

पेड़ एक प्राकृतिक स्रोत हैं जो मनुष्य के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। पेड़ से हमें इतनी सामग्री उपलब्ध होती है कि हमारे जीवन का कोई भी भाग वनों के प्रभाव से अछूता नहीं कहा जा सकता, इसलिए भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से ही वनों को अत्यधिक महत्त्व दिया गया है।

वर्षा की प्राप्ति-

सर्वप्रथम वन किसी भी स्थान पर होने वाली वर्षा के लिए उत्तरदायी होते हैं। जितने घने रूप में किसी देश में वन होंगे, उतनी ही अधिक मात्रा में वहाँ वर्षा होगी। भारत जैसे कृषि-प्रधान देश में तो वर्षा का अत्यधिक महत्त्व है।

पेड़ो से लकड़ी की प्राप्ति-

हमारे जीवन में लकड़ी का स्थान लोहे के बराबर है। भौतिक जीवन में लकड़ी के इतने अधिक सामान का उपयोग किया जाता है कि उसके अभाव में मानव का जीवन कठिन हो जायेगा और जीवन की अधिकांश सुख-सुविधाएँ समाप्त हो जायेंगी। घरों में लगाने के लिए दरवाजे और बैठने व लेटने के लिए कुर्सी, मेज, पलंग आदि सामान लकड़ी से ही बनता है|

और वह लकड़ी हमें पेड़ से उपलब्ध होती है। यातायात में सुविधा के लिए बहुत-से पुल लकड़ी से बनते हैं। रेलगाड़ियों, पटरियों तथा नौकाओं और जलपोतों आदि में लकड़ी का बहुत अधिक प्रयोग होता है।

अमूल्य औषधियाँ-

वनों से हमें अनेक औषधियाँ भी मिलती हैं। वृक्षों की छाल से, जंगली फलों से, फूलों और जड़ी-बूटियों
से विभिन्न रोगों के उपचार में काम आने वाली औषधियाँ बनती हैं। वास्तव में वनों से प्राप्त औषधियों से अनेक दुःसाध्य रोगों की चिकित्सा सम्भव है। आधुनिक वैज्ञानिक प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है कि वनों से प्राप्त अनेक फल-फूल आदि बिना रासायनिक प्रक्रिया के ही कैंसर जैसे भयंकर रोगों को नष्ट करने में सहायक होते हैं।


पेड़ो से अन्य लाभ-

पेड़ो से एक ओर वर्षा होती है, दूसरी ओर वर्षा के पानी के साथ मिट्टी का अपरदन रुकता है। मिट्टी का
कटाव अधिक होने से बाढ़ आने का भय बढ़ जाता है। इस प्रकार वन बाढ़ से सुरक्षा में भी उपयोगी सिद्ध होते हैं इसीलिए भारत के उन भागों में जहाँ बाढ़ का भयंकर प्रकोप होता है, तेजी से वृक्ष लगाये जाने पर बल दिया जा रहा है। वनों में भाभड़ आदि की उपज भी पर्याप्त होती है जिसका प्रयोग कागज जैसी बहुमूल्य वस्तुयें बनाने में किया जाता है।


आध्यात्मिक लाभ-

भौतिक जीवन के अतिरिक्त मानसिक एवं आध्यात्मिक पक्ष में भी वनों का महत्त्व कुछ कम नहीं है। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि वनों में ही निवास करते थे तथा अपना सारा समय चिन्तन-मनन में ही व्यतीत किया करते थे। इस प्रकार भारतीय जीवन में ज्ञान-विज्ञान के नये आयामों की खोज वनों में ही हुई।


उपसंहार-

किसी भी दृष्टि से देखिए, मानव जीवन में वनों की अत्यधिक उपयोगिता है; किन्तु स्वार्थी मनुष्य इन उपयोगी वनों को काटकर अपने भविष्य को संकटमय बना रहा है। इसलिए विश्वभर में अब वनों के संरक्षण पर बल दिया जा रहा है।

एक निश्चित सीमा से अधिक वनों के कटान पर रोक लगा दी गयी है। भारतवर्ष में वन संरक्षण के साथ-साथ 'वृक्ष लगाओ' अभियान भी सरकार को सच्चाई के साथ चलाया जाना चाहिए, अन्य कागजी योजनाओं की भाँति नहीं-जितनी संख्या में वृक्ष कटें, उतनी ही संख्या में नये वृक्ष तैयार जायें। प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह वनों की सुरक्षा पर पूर्ण ध्यान दे जिससे राष्ट्रीय तथा आर्थिक जीवन समृद्ध हो सके। वृक्षारोपण आज की आवश्यकता है।


बुधवार, 19 मई 2021

बाढ़ पर निबंध

Essay on flood in hindi

बाढ़ पर निबंध हिन्दी में


रूपरेखा-

1. प्रस्तावता. 2. तीन जलवृष्टि 3. बाढ़ की चेतावनी, 4. जल-विस्तार, 5. जल की व्यापकता एवं गम्भीरता, 6. करुणापूर्ण स्थिति 7. सहायता कार्य, 8. हानियाँ, 9. उपसंहार।


प्रस्तावना-

भारत में क्षण-क्षण पर प्रकृति के विविध रूप देखे जा सकते हैं। एक ओर हरे-भरे जंगल, लहराते खेत, रंग-बिरंगे पुष्प आदि का अपार सौन्दर्य फैला है तो दूसरी ओर ऊबड़-खाबड़ जमीन, दुर्गम चट्टानें कैंटीले तथा कंकरीले मार्ग हैं।

प्रकृति देवी प्रसन्न होती हैं तो झोली रत्नों से भर देती है और कुपित होती है तो सब कुछ नष्ट-भ्रष्ट कर देती है। जो वर्षा समय पर ठीक जाती है तथा धन-जन का विनाश कर डालती है। प्रकार आकर हरी-हरी फसलें उगाती है. वही असमय भयंकर रूप धारण कर फसल, घर, ग्राम, नगर आदि को बहाती हुई चली


तीन जलवृष्टि-

एक दिन दोपहर बाद अचानक ही बादल घिर आये। सभी ओर अँधेरा छा गया। कुछ ही क्षणों में तीव्र सभी भयभीत हो रहे थे। जल वृष्टि हाने लगी। लगातार शाम तक रात तक तथा प्रातः काल तक वर्षा होती रही। इस मूसलाधार वर्षा का पानी चारों ओर फैल गया। अपार जल राशि उमड़ रही थी। नाली-नाले, तालाब, नदी आदि सभी उफन पड़े।


बाढ़ की चेतावनी-

आगरा में इस वर्षा की विषमता की देखकर अधिकारियों ने नगरवासियों को अतिवृष्टि से होने वाले के प्रकोप की चेतावनी देना प्रारम्भ कर दिया। दिल्ली, मथुरा आदि यमुना किनारे के नगरों में बाढ़ आ गयी थी; अत: डयो, समाचार-पत्र, दूरदर्शन आदि में उन्हीं के साथ आगरा का भी नाम जुड़ गया। सभी से सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए कहा जा रहा था। क्योंकि कि यमुना का जलस्तर दिनदूना रात चौगुना बढ़ रहा था। यमुना जल के बहाव की तीव्रता देखकर


जलविस्तार-

आगरा तथा उसके चारों ओर पानी ही पानी दिखायी देता था। नगर के निचले भागों के घरों में पानी भरा था। अपार सामान, सम्पत्ति आदि डूब रही तथा बह रही थी। सभी ओर का पानी यमुना नदी में आ रहा था। अत: नदी में पानी इतनी तेजी से बढ़ा कि दोनों ओर के किनारों को डुबोकर बाहर फैलाने लगा। पीछे के जल के प्रवाहर से नदी का विस्तार मीलों चौड़ा हो गया जनता त्राहि मां, त्राहि मां कर रही थी तथा चारों ओर इस बाढ़ की ही भयकारिणी चर्चाएँ थीं। मैं भी अपने मित्रों के साथ बाढ़ का व्यापक रूप देखने चल दिया।


जल की व्यापकता एवं गम्भीरता-

हम सभी यमुना के नेहरू पुल पर पहुंचे। हमने जो लोगों से सुना था। उससे कई गुनी जल राशि वहाँ दिखायी दी। चारों ओर जल ही जल था। घर वृक्ष, सड़क आदि सभी पानी में निमग्न थे। हमने दूरबीन से देखा किन्तु कुछ ऐतिहासिक मीनारों की चोटियों के अतिरिक्त कुछ भी दिखायी नहीं पड़ रहा था। जल का जितना विस्तार था, उतनी हो गहराई भी थी। ऐसा लग रहा था कि मानों इन्द्र देवता सभी को समेटकर कहीं एक स्थान पर ले जाना चाहते हैं।


करुणापूर्ण स्थिति-

भयानक रूप में फैली बाढ़ को देखकर लगता था कि कोई देवी प्रकोप है जिससे धन तथा जन का बचपाना असम्भव है। हरी फसलें जल में बही चली जा रही थीं। किसानों की झोंपड़ी, वृक्ष, आदमी, पशु-पक्षी आदि इस जल प्रवाह में बहे जा रहे थे। अनेक प्रकार के क्रन्दनपूर्ण दृश्य दिखाई पड़ रहे थे। यह अप्रत्याशित घटना थी अत. अनेक लोग, गाँव घर तथा खेत इसकी चपेट में आ गये थे। डूबते हुए घरों से चीत्कार निकल रहा था। चारों ओर हाहाकार मचा था। सभी ओर विनाश का भयंकर ताण्डव नृत्य दिखायी पड़ रहा था।


सहायता कार्य-

अनेक समाज सेवी लोगों तथा संस्थाओं ने बाढ़ में सहायता कार्य करने प्रारम्भ कर दिये। बाढ़ में फंसे लोगों की सहायता हेतु नाव, स्टीमर डोंगी आदि नदी में प्रवेश कर रहीं थीं। उनमें खाने की सामग्री कपड़े आदि रखे थे। बहते हुए लोगों को निकाला जा रहा था। शासन की ओर से व्यक्ति बाढ़ से सुरक्षा करने के लिए कार्य कर रहे थे। सेना के जवान भी सभी उपकरणों सहित सहायता कर रहे थे। यह देखकर लग रहा था कि आज की व्यक्तिवादी दुनियाँ में भी सहृदय व्यक्तियों का अभाव नहीं है।


हानियाँ-

बाढ़ में धन-जन की अपार क्षति हो रही थी। हजारों मनुष्य स्त्री मर रहे थे। कुछ अपने परिवारों, घरों आदि से बिछुड़कर कहीं के कहीं पहुंच रहे थे। बच्चे माँ के लिए तथा बच्चों के लिए माँ आकुल-व्याकुल थीं। घर बहे चले जा रहे थे

गिर रहे थे तथा उनके नीचे आदमी, पशु दब रहे थे। भयानक जल राशि हरी-भरी खेती को रोंद रही थी। इस बाढ़ के कारण अनेक प्रकार की हानियाँ हो रही थीं।


उपसंहार-

इस भयंकर दृश्य को देखकर सभी की आँखों में आँसू भरे थे। सभी का मन उदास था। अन्तर को उद्वेलित करने वाली यह भयंकर विपत्ति ईश्वरीय प्रकोप का प्रत्यक्ष संकेत थी। रात्रि के समय पानी उतर गया। लगभग सभी मकानों की दीवारों में दरारें पड़ गई थीं। लकड़ी का सामान फूल गया था। कमरों के 'वुड वर्क' की हालत देखकर रोने के साथ हँसी भी आ रही थी। आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले कुछ निर्धन व्यक्ति काल-कवलित भी हो चुके थे।



मंगलवार, 18 मई 2021

sadak suraksha par nibandh

Sadak Suraksha Par Nibandh

( सड़क सुरक्षा पर निबंध )

रूपरेखा-

1. प्रस्तावना  2.यातायात के प्रमुख साधन, 3. सड़क के नियम एवं संकेत-(क) नियम, (ख) संकेत, 4.उपसंहार।

प्रस्तावना-

सुरक्षित जीवन के लिए सड़क के नियम एवं संकेतों का भलीभाँति पालन किया जाना आवश्यक है। सड़क के नियमों का सही प्रकार पालन करने से हम यातायात विषयक बढ़ती हुई दुर्घटनाओं से स्वयं को सुरक्षित रख सकते हैं। सड़कों पर यातायात के जोडले वाहनों की संख्या में वृद्धि तथा यातायात सम्बन्धी संकेतों के अभाव में अनहोनी दुर्घटनाएँ घट जाती हैं जिनसे मनुष्य की या सो घटनास्थल पर ही मृत्यु हो जाती है अथवा वह जीवनभर के लिए विकलांग बन जाता है। यह विकलांगता मनुष्य को जीवन भर उसको सहक के नियमों को अज्ञानता की याद दिलाती रहती है। इससे वह नित्य मर-मरकर जीते हुए अपना जीवन काटता है। प्रमुख साधन-मनुष्य के विकास के इतिहास में यातायात के साधनों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। पहिए के विकास से मानव जीवन के विकास की कहानी जुड़ी है। मनुष्य ने ज्यों-ज्यों अपने बुद्धि-बल का प्रयोग किया त्यों-त्यों उसने जातायात के साधन विकसित किये। पहले मनुष्य ऊंट, घोड़े, खच्चर, ताँगे तथा बैलगाड़ियों से यात्राएँ किया करता था। उसकी मात्रा समय एवं व्यय साध्य होती थी। इसके बाद तेज गति वाले वाहनों का विकास हुआ। मालवाहक ट्रक, मोटरसाइकिल,

स्कुटर, बस तथा रेल, ट्राम गाड़ियों की खोज भी मानव बुद्धि के ही चमत्कार हैं। पहले लोगों के पास साइकिल तक न थी, आज मोटर साइकिल तथा कारों की भरमार है। मानव जैसे-जैसे आर्थिक रूप से समान होता गया, वैसे-वैसे उसकी क्रयशक्ति बढ़ी और उसने विभिन्न प्रकार के वाहन खरीदना प्रारम्भ कर दिया। आज के समय से तो इनकी संख्या इतनी अधिक हो गयी है कि घर के प्रत्येक सदस्य को मोटर साइकिल अथवा कार की आवश्यकता पड़ने कमी है। भले ही बच्चे भलीभाँति कार चलाना न जानते हों लेकिन वे मोटर साइकिल अथवा कार लेकर सड़कों पर निकल पड़ते हैं। परिणाम होता है-भीषण दुर्घटना। तकनीकी विकास का भी इन दुर्घटनाओं के विकास में ब योगदान है।

सड़क के नियम एवं संकेत-(क) नियम-

यातायात के साधन जितने बढ़ रहे हैं, उतने ही यातायात के नियम बढ़ रहे हैं और उनमें जटिलता आ रही है।

सड़क यातायात के कुछ प्रमुख नियम इस प्रकार हैं 

  1. हम हमेशा सड़क के बायीं ओर चलें।
  2. पैदल चलने के लिए फुटपाथ का प्रयोग करें।
  3. सड़क पार करने हेतु 'ओवर ब्रिज' अथवा 'जेब्रा लाइन को अपनाएँ।
  4. वाहन मोड़ते समय यथासम्भव उचित संकेत देने का प्रयास करें, अचानक वाहन मोड़ना दुर्घटना का कारण बन जाता है।
  5. वाहन को चलाने में सावधानी अपनाएँ क्योंकि ‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।
  6. सड़क पर लगे निशान, चिह्नों तथा संकेतों का पालन करें।

(ख) सड़क सुरक्षा के कुछ संकेत-

सड़क पर चलने के सम्बन्ध में कुछ संकेत निर्धारित किये गये हैं जिनके पालन से हम दुर्घटना से बच सकते हैं। प्राय: शहरों में चौराहों पर लाल, पीली तथा हरी बत्तियाँ लगी रहती हैं। लाल बत्ती का अर्थ है-एकदम रुकिए और जब तक लाल बत्ती जलती रहे तब तक रुके रहें। पीली बत्ती जलने का अर्थ है-सब ओर चौकन्ने होकर देखिए तथा बढ़ने के लिए तैयार हो जाइए। हरी बत्ती जलने का अर्थ है-चलिए, आगे बढ़िए। कभी-कभी यातायात बहुत कम हो जाने पर अथवा लाल या हरी बत्तियों में किसी गड़बड़ी के कारण मात्र पीली बत्ती ही लगातार जलती-बुझती रहती है। यह इस बात का संकेत है कि सावधानीपूर्वक देखकर चलिए। इसी प्रकार यदि आगे मोड़ होता है तो उसका संकेत भी कुछ दूर पहले ही सड़क के किनारे बोर्ड पर अंकित रहता है। इसके अतिरिक्त स्कूल, अस्पताल, सड़क बन्द होने तथा आगे आने वाले मोड़ के संकेत भी इसी प्रकार के बोडों पर बने होते हैं। हमें इन संकेतों का ध्यान रखना चाहिए। पुल, फाटक आदि के संकेत भी सड़क के किनारे लगे रहते । जिनका पालन किया जाना परमावश्यक है।

उपसंहार-

यातायात के नियमों एवं संकेतों का पालन करना मानवता के हित में है। नियमों का पालना करना समाज, प्रदेश तथा राष्ट्र हितकारी होता है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर यातायात पुलिस तथा प्रदेश का पुलिस प्रशासन 'यातायात नियम सप्ताह आयोजित करते हैं। नियमानुसार सड़कों पर वाहन न चलाना दुर्घटना का कारण बन जाता है अत: दुर्घटनाओं से बचने के लिए उचित गति से नियमानुसार वाहन चलाएँ। वाहन चलाना सीखकर ही लाइसेंस बनवाएँ। अभ्यास सबसे बड़ा गुरु है अत: वाहन चलाने का धैर्यपूर्वक अभ्यास करना चाहिए। वाहन चलाते समय वाहन की गति को नियन्त्रित रखा जाना भी आवश्यक है, क्योंकि ऐसा करने से दुर्घटना की सम्भावना कम हो जाती है। वाहन को सजगतापूर्वक चलाना चाहिए क्योंकि दुर्घटना से देर ली। सड़क के नियम पालन में लापरवाही नहीं करनी चाहिए। स्वयं उचित ढंग से चलना चाहिए तथा अन्य वाहन चालकों से भी सतर्क रहना चाहिए. हो सकता है कि दूसरा वाहन चालक दक्ष न हो।




सोमवार, 17 मई 2021

Gantantra Diwas Par Nibandh In Hindi

Gantantra Diwas Par Nibandh In Hindi

( गणतन्त्र दिवस पर निबन्ध हिंदी में )



रूपरेखा-

1. प्रस्तावना, 2. स्वतन्त्रता-प्राप्ति, 3. गणतन्त्र की स्थापना, 4. देशव्यापी उत्सव, 5. राजधानी में 26 जनवरी 6. उत्सव से प्रेरणा।

प्रस्तावना-

राष्ट्र का स्वतन्त्रता संग्राम पूरे चढ़ाव पर था। देश के अनेक भक्त फाँसी का फन्दा चूम चुके थे। वह दिन था 31 दिसम्बर 1929 ई० । लाहौर में रावी नदी के तट पर हो रहे अखिल भारतीय कांग्रेस के अधिवेशन में पं० जवाहरलाल नेहरू ने अध्यक्ष पद के घोषणा की- "पूर्ण स्वराज्य-प्राप्ति ही हमारा उद्देश्य है।" अधिवेशन में उपस्थित सभी नेताओं ने प्रतिज्ञा की कि पूर्ण स्वराज्य प्राप्त कर ही हम दम लेंगे। नया जोश, नयी चेतना और नया उत्साह सारे देश में फैल गया। प्रथम स्वतन्त्रता दिवस 26 जनवरी, 1930 ई० को मनाया गया था।

स्वतन्त्रता-प्राप्ति-

प्रति वर्ष 26 जनवरी को अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण करते हुए स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष चलता रहा। कह
बार सत्याग्रह हुए। देशप्रेमियों ने जेले भर दी। महात्मा गांधी की नीतियों पर चलन हुए लोगों ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी। फलस्वरूप 15 अगस्त, 1947 को देश स्वतन्त्र हुआ और भारत माता की परतन्त्रता की जंजीरें चटाय से टूट गर्यो । गणतन्त्र की स्थापना-देश स्वतन्त्र तो हुआ किन्तुं उस समय हमारे पास न अपना संविधान था, न अपने कानून है। अंगों के बनाये हुए विधान और कानून के अधीन ही कार्य प्रारम्भ हुआ। संविधान सभा बनायी गयी।
संविधान का निर्माण हुवा और 26 जनवत. 1930 ई० को भारत में सम्पूर्ण प्रभुत्व गणराज्य की घोषणा हुई। हमारा संविधान लागू हुआ और डॉ. राजेन्द्र प्रमाद स्वतन्य नान्न के प्रथम राष्ट्रपति बने। इस प्रकार 26 जनवरी, सन 1950 ई० को जो स्वतन्त्रता दिवस मनाया गया, वह 20 वर्ष बाद 26 जनवरी सन् 1950 ई० को प्रथम गणतन्त्र के रूप में परिवर्तित हो गया। उस दिन सम्पूर्ण देश ने हर्षोल्लास के साथ उत्सव मनाया। गाँव गाँव और शहर-शहर में जनसभाएं हुईं, भाषण और सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। दिल्ली तो उस दिन दुलहिन बनी थी। देश के कोने -कोने में लोग उत्सव देखने आये थे। विभिन्न प्रदेशों की झाँकियाँ शोभा पा रही थीं। लाल किले पर मुख्य उत्सव था। तीनों सेनाओं ने सलामी दी। राष्ट्रगान की धुन बजायी गयी। तिरंगा फहराया गया। ऐसा अपूर्व उत्सव सम्भवत: दिल्ली में पहली बार हुआ था। उसी दिन में 26 जनवरी, हमारे देश का महान राष्ट्रीय पर्व बन गया है।

देशव्यापी उत्सव-

26 जनवरी हमारे राष्ट्र का सबसे महान राष्ट्रीय उत्सव है। यह किसी विशेष मजहब, सम्प्रदाय अथवा वर्ग विशेष का उत्सव नहीं, सकल भारतीयों का उत्सव है। यह जन-जन का त्योहार है। भारत के कोने-कोने में गाँवों और नगरों में धूमधाम से यह उत्सव मनाया जाता है। इस दिन सब सरकारी तथा गैर-सरकारी दफ्तरों और संस्थाओं में छुट्टी रहती है। शहरों में विशेष चहल-पहल होती है।

राजधानी में 26 जनवरी-

गणतन्त्र दिवस का उत्सव राजधानी में दर्शनीय होता है। भारत की विभिन्न क्षेत्रों में लोगों की संख्या में जनता प्रति वर्ष गणतन्त्र दिवस का उत्सव देखने आती है। इस दिन राष्ट्रपति जल सेना, स्थल सेना तथा नभ मेना की सलामी लेते हैं। इसके बाद राष्ट्रपति भवन से एक बहुत बड़ा जुलूस बड़ी-बड़ी सड़कों से होता हुआ लाल किले तक पहुँचना है। इस जुलूस में कई तरह की सैनिक टुकड़ियाँ, फौजी सामान तथा अस्त्र-शस्त्र होते हैं। इसमें भारत के प्राय: सभी प्रान्नों की सांस्कृतिक झाँकियाँ देखने योग्य होती हैं।

रात में बिजली के प्रकाश से दीवाली मनायी जाती है। इसी प्रकार दूसरे नगगे में भी जुलूस निकलते हैं, खेलकूद होते हैं तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम जुटाये जाते हैं।

उत्सव से प्रेरणा-

26 जनवरी के दिन हमें एकता, देशभक्ति और जनसेवा की प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए तथा देश के उत्थान और सर्वांगीण विकास में सहयोग का संकल्प लेना चाहिए।


शुक्रवार, 14 मई 2021

essay on computer In hindi

Essay On Computer In Hindi

(कम्प्यूटर पर निबंध हिन्दी में )

Essay On Computer In Hindi For Class 5,Class 6,Class 7,Class 8,Class 9,Class 10,Class 11,Class 12,

निबंध-

1.परिचय, 2. कम्प्यूटर के उपयोग, 3. कम्प्यूटर एवं मानव, 4. उपसंहार

परिचय-

गत हजार वर्षों में विज्ञान ने मानव जीवन को पूर्णत: परिवर्तित कर दिया है। परन्तु इन हजार वर्षों में से जितना परिवर्तन पहले 900 वर्ष में नहीं हो पाया था जितना परिवर्तन केवल अन्तिम 100 वर्षों में हो गया। इसी प्रकार पूर्ण बीसवीं शताब्दी में जो विकास और परिवर्तन उपस्थित हुए हैं उनमें से अन्तिम दशक में हुए परिवर्तन ही अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। भिप्राय यह है कि विज्ञान के विकास की गति तीव्र से तीव्रतर होती जा रही है। पिछले सौ वर्ष में वैज्ञानिक अनुसंधानों और आविष्कारों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण योगदान कम्प्यूटर का ही है। पिछले कुछ वर्षों में तो इस यन्त्र का उपयोग जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इतना अधिक हो गया है कि किसी भी प्रयोगशाला, उद्योग, अनुसंधान केन्द्र यहाँ तक कि आधुनिक कार्यालय और विभाग के कम्प्यूटर-विहीन होने की कल्पना ही नहीं की जा सकती।

कम्प्यूटर के उपयोग-

वैसे तो कम्प्यूटर अब धीरे-धीरे हमारे जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रवेश करता जा रहा है। हम अपनी विभिन्न गतिविधियों के लिए कम्प्यूटर पर अधिक-से-अधिक आश्रित होते जा रहे हैं, फिर भी सुविधा के लिए इसके विभिन्न सार्बजनिक क्षेत्रों में उपयोग का विस्तार से अध्ययन कर लेना अच्छा रहेगा।


(1) गणना एवं सूचना-संग्रह (बैंकिंग आदि)-

अब तक बैंकों में खातों का हिसाब रखने का काम लिपिकों द्वारा खाता पृष्ठों पर किया जाता था परन्तु अब खाता पृष्ठों और किताबों के बनाने और सुरक्षित रखने की आवश्यकता नहीं है। अब इन्हें कम्प्यूटरों में भर कर सुरक्षित भी रखा जा सकता है और उनमें गणनाएँ भी तीव्रता से की जा सकती हैं। कम्प्यूटर की इस क्षमता का उपयोग कर बड़ी-बड़ी परीक्षा संस्थाओं (जैसे यू०पी० बोर्ड एवं विश्वविद्यालय आदि) परीक्षाफल थोड़े ही समय में तैयार किये जा सकते हैं। गणनाओं के संचय और उपयोग की क्षमता से ही अब चुनाव परिणामों को कम्प्यूटरीकृत मशीनों द्वारा अल्पकाल में ही प्राप्त किया जा सकता है।


(2) सूचना तकनीक के क्षेत्र में-

अब कम्प्यूटर द्वारा देश-विदेश की सूचनाओं को तीव्रगति से प्रेषित एवं संकलित किया जा सकता है। अन्तरिक्षयानों एवं उपग्रहों में स्थापित विभिन्न अनुसंधान संयन्त्रों द्वारा प्रेषित बड़ी-बड़ी सूचनाएँ एवं गणनाएँ अब क्षणों में एक स्थान से दूसरे स्थान को प्रेषित की जा रही हैं। पूर्व रेलवे आरक्षण वायुयान आरक्षण भी इसी कारण सम्भव हो सके हैं। इन्टरनेट ईकॉम ईमेल और फैक्स मशीनों में भी कम्प्यूटर का उपयोग होता है।


(3) मुद्रण एवं प्रकाशन-

कम्प्यूटर द्वारा संचालित फोटो कम्पोजिंग मशीन ने पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तक प्रकाशन के कार्य को
तीव्रगति एवं सुविधा प्रदान की है। पहले छापेखानों में एक-एक अक्षर का टाइप एकत्र कर जो कम्पोजिंग किया जाता था अब उसकी आवश्यकता नहीं रही है। अब तो चुम्बकीय डिस्क में सामग्री भर कर उसका क्षणों में कम्पोजिंग और मुद्रण हो जाता है। गणनाएँ और अक्षर ही नहीं, अब कम्प्यूटर द्वारा चित्रों आदि की छपाई भी सरल हो गयी है। यही कारण है कि पहले जिन पुस्तकों और पत्रिकाओं को प्रकाशित होने में बहुत-सा समय व्यय हो जाता था अब वह प्रकाशन अपेक्षाकृत अल्पकाल में ही सम्भव हो गया है।


(4) कला, संगीत एवं डिजाइनिंग के क्षेत्र में-कम्प्यूटर अब गणना और स्मृति के लिए ही नहीं, कला, संगीत और डिजाइनिंग के क्षेत्र में भी मनुष्य को सहयोग दे रहा है। कलाकार कम्प्यूटर की सहायता से अपने चित्र, डिजाइन और स्वरों तक का उचित समायोजन कर सकते हैं।


(5) वैज्ञानिक अनुसंधान एवं खोज-

कम्प्यूटरों की सहायता से विभिन्न प्रयोगशालाओं और वेधशालाओं में वैज्ञानिक अनुसंधान किये जा रहे हैं। अब गणनाओं और परिणामों को अपेक्षाकृत अधिक शुद्ध रूप से और तीव्रगति से प्राप्त किया जा सकता है। वैज्ञानिक उत्पादन एवं विभिन्न उद्योग-धन्धों में भी इसके उपयोग से हम लाभान्वित हो रहे हैं।


(6) युद्ध के क्षेत्र में-

पहले विद्युतीकृत कम्प्यूटर का प्रयोग अमेरिका ने अणुबम के विस्फोट सम्बन्धी गणनाओं के लिए किया था। अब अन्तरिक्ष अनुसन्धानों, मिसाइलों, राडा और सूक्ष्मातिसूक्ष्म यन्त्रों और उपकरणों का इस प्रकार कम्प्यूटरीकरण कर दिया है कि अब लगने लगा है कि भविष्य के युद्धों में कम्प्यूटरों की अहम भूमिका रहेगी।


कम्प्यूटर एवं मानव-

अब सरकारें, बड़ी-बड़ी व्यावसायिक एवं औद्योगिक संस्थाएँ और अनुसंधान केन्द्र ही नहीं प्रत्येक हर
सम्पन्न व्यक्ति कम्प्यूटर को अपने व्यक्तिगत सहायक के रूप में रखने का इच्छुक है। मानव की कम्प्यूटर पर बढ़ती आश्रितता को देखकर कभी-कभी मनुष्य अपने द्वारा बनाये गये इस यन्त्र को मनुष्य से अधिक उपयोगी और महत्त्वपूर्ण समझने लगता है, परन्तु
यह भूल जाता है कि मानव द्वारा निर्मित इस उपकरण में मनुष्य की अपेक्षा अनेक दोष हैं। इसमें अनुभूति और उस पर आधारित अद्भावों का अभाव है। यह बिना संचालक के अपंग है तथा इसमें अन्त:प्रेरणा एवं स्वयं निर्णय का मानवोचित गुण भी नहीं है।


उपसंहार-

हमारे देश में कम्प्यूटर क्रान्ति लाने का श्रेय हमारे पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी को है। समान्य जानकारियों के अतिरिक्त भविष्य में कम्प्यूटर विवाह हेतु जोड़े तैयार करेगा फिर भी हर वैज्ञानिक अनुसंधान की भाँति कम्प्यूटर के अनुचित प्रयोग का खतरा वर्तमान है और क्योंकि कम्प्यूटर का क्षेत्र और कार्यक्षमता अधिक है, अंत: इसके खतरे भी असीम हैं। गणना अथवा उपयोग की जरा सी ही त्रुटि सम्पूर्ण मानवता का विनाश करने में सक्षम है। भारत जैसे जनबहुल देश में तो इससे बेरोजगारी बढ़ने का खतरा भी भयंकर ही है अनेक दोष होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्रों में इसके महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता, समाज में कम्प्यूटर ने अपनी महत्ता एवं उपयोगिता अल्पसमय में ही स्थायी रूप से स्थापित कर ली है।


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