Berojgari par nibandh in hindi
बेरोजगारी पर निबंध
बेरोजगारी की समस्या पर निबंध
रूपरेखा-
1. प्रस्तावना, 2, बेरोजगारी का अर्थ एवं प्रकार, 3. बेरोजगारी के कारण, 4. बेरोजगारी दूर करने के उपाय, 5. उपसंहार।
प्रस्तावना-
स्वतन्त्रता-प्राप्ति के सत्तर वर्ष पश्चात भी हम अनेक राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का पूर्ण समाधान नहीं खोज पाये हैं। इस प्रकार की समस्याओं में बेरोजगारी एक ऐसी समस्या है जो दिन-प्रतिदिन उग्र से उग्रतर होती जा रही है। सरकार, परिवार और व्यक्ति सभी स्तरों पर इस समस्या की जटिलता को अनुभव तो किया जा रहा है परन्तु भरसक प्रयास करने पर भी यह समस्या सुलझ नहीं पा रही है।
बेरोजगारी का अर्थ एवं प्रकार-
बेरोजगारी (Unemployment) का अर्थ है-इच्छा एवं योग्यता होते हुए भी व्यक्ति को उचित रोजगार का न मिलना। आज हमारे समाज में हजारों-लाखों ऐसे नवयुवक हैं जो ऊँची से ऊँची शिक्षा और योग्यता प्राप्त करने के बाद भी नौकरी की तलाश में मारे-मारे फिरते हैं अथवा अपनी योग्यता के अनुसार नौकरी और वेतन न पाकर किसी छोटी-मोटी नौकरी और नाममात्र का वेतन पाकर जैसे-तैसे दिन काट रहे हैं।
बेरोजगारी को हम पढ़े-लिखों और अनपढ़ लोगों की बेरोजगारी ( Berojgari ) के रूप में भी विभाजित कर सकते हैं और इसे पूर्ण बेरोजगारी तथा आंशिक बेरोजगारी के रूप में भी विभाजित कर सकते हैं।
आंशिक बेरोजगारी में व्यक्ति सं तो पूर्णकालिक स्थायी नौकरी पाता है और न अपनी योग्यता और सामर्थ्य के अनुसार वेतन पाता है। आंशिक रोजगार युवकों की विवशता बन गयी है अत: इसे भी एक तरह से पूर्ण बेरोजगारी ही समझना चाहिए।
बेरोजगारी के कारण-
अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों और राजनीतिज्ञों ने इस समस्या पर विचार करते हुए इसके कारणों पर भी गम्भीरता से विचार किया है। इन कारणों में से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
- जनसंख्या में अनियन्त्रित वृद्धि - प्रतिवर्ष बढ़ने वाली जनसंख्या के अनुपात में बेरोजगार युवक-युवतियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि प्रयास किये जाने पर भी बेरोजगारी की समस्या हमारे सम्मुख सुरसा के मुख की भाँति बढ़ती ही जा रही है।
- यन्त्रीकरण एवं औद्योगीकरण- स्वचालित मशीनों और कम्प्यूटर के समावेश से बेरोजगार युवक-युवतियों की एक बड़ी फौज पैदा हो गयी है। समस्या के इस पक्ष को समझ कर ही हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने चरखे को प्रतीक बना कर लघु और अतिलघु उद्योग-धन्धों को अपनाने की प्रेरणा दी थी। परन्तु हम राष्ट्रपिता की जय-जयकार करके ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझने लगे और उनकी शिक्षाओं को उठाकर हमने ताक पर रख दिया।
- दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति - अंग्रेजों द्वारा संचालित शिक्षा पद्धति थोड़े-बहुत संशोधन और परिवर्धन के साथ आज भी प्रचलित है। इसने व्यक्ति को शिक्षित बना कर साहब (काम को अपमान समझने वाला) बना दिया। शिक्षा भी ऐसी दी गयी जिसके द्वारा धनोपार्जन की कोई पद्धति नहीं सिखाई गयी।
बेरोजगारी दूर करने के उपाय -
इम समस्या के समाधान का एकमात्र उपाय यह है कि इसको जन्म देने और बढ़ाने वाली स्थितियों को बदल दिया जाये। बेरोजगारी दूर करने के लिए निम्नलिखित प्रयास किये जा सकते हैं
- जनसंख्या नियन्त्रण - हमारे देश में अनेक सामाजिक और आर्थिक समस्याओं के समान बेरोजगारी की समस्या का समाधान भी जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए परिवार कल्याण कार्यक्रमों को लागू करके सम्भव हो सकता है।
- कृषि आधारित उद्योग - धन्धों का विकास-भारत एक कृषि-प्रधान देश है। यहाँ की अधिकांश जनता ग्रामों में रहकर कृषि को ही व्यवसाय बना कर उस पर आश्रित रहती है। अत: बेरोजगारी की समस्या का समाधान कृषि के विकास और उस पर आधारित कुटीर उद्योग और लघु उद्योगों के विकास से भी सम्भव हो सकता है।
- आधारभूत सुविधाओं का विकास - आधारभूत सुविधाओं, जैसे-सड़कों, सिंचाई के लिए नहरों और रहने के लिए मकानों आदि की पर्याप्त सुविधा के विकास से नवयुवकों को रोजगार के नये अवसर प्राप्त होंगे और देश का आर्थिक विकास सम्भव होगा।
- शिक्षा पद्धति - वर्तमान शिक्षा को रोजगारोन्मुख बनाने की आवश्यकता है। अब वह समय आ गया है जब युवक-युवतियों को व्यवसाय सम्बन्धी शिक्षा देकर उन्हें अपनी आजीविका कमाने योग्य बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
उपसंहार-
बेरोजगारी देखने में तो केवल एक आर्थिक समस्या नजर आती है परन्तु इसका सम्बन्ध समाज की शान्ति-व्यवस्था और युवकों के मनोविज्ञान से भी है। रोजगार के अभाव में नवयुवकों में लूट-खसोट आदि अपराधों की वृत्ति बढ़ती जा रही है और दूसरी ओर उनमें निराशा और आक्रोश पनप रहा है; अत: आवश्यक है कि सभी मिलकर इस समस्या के समाधान के लिए शीघ्रातिशीघ्र भरसक प्रयत्न करें